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Agnipath: a non-permanent appointment to the Indian armed forces

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आग के साथ खेलना

इसे लागत में कटौती के उपाय के अलावा कुछ भी मानने में, इसकी विफलता को देखते हुए अग्निपथ को स्थगित किया जाये

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केंद्र की 14 जून को घोषणा के अनुसार, भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों अंगों में सभी गैर-अधिकारी नियुक्तियां अग्निपथ (शाब्दिक रूप से, आग का मार्ग) के माध्यम से होंगी। सरकार ने इस कदम के लिए अपने कारणों को गिनाया है, लेकिने यह कारण ना केवल भर्ती की प्रक्रिया को बल्कि सैनिक के चरित्र को भी मौलिक रूप से बाधित करेंगे। किसी के संकेत पर, विशेषज्ञों का एक वर्ग इस कदम की प्रशंसा करने में कूद गया है कि यह कदम देश की रक्षा के लिए परिवर्तनकारी होगा।

लेकिन रक्षा समुदाय के कई लोगों और राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने भी अपनी आपत्तियां और सदमे को व्यक्त करने से परहेज नहीं किया है। सेना में शामिल होने के इच्छुक युवा कई राज्यों में विरोध हेतु सड़कों पर हैं, और यहां तक कि कई स्थानों पर हिंसक भी हो रहे हैं। कोविड-19 के कारण पिछले दो वर्षों में कोई भर्ती नहीं होने के कारण, ये युवा पहले से ही निराश थे। मामूली शिक्षा और कौशल के साथ, उन्हें डर है कि नई प्रक्रिया गरीबी से एक सुलभ पलायन मार्ग को रोकती है।

मौजूदा 15 साल से अधिक सेवा और उसके बाद आजीवन पेंशन के विपरीत, नए भर्ती, या अग्निवीरों (शाब्दिक रूप से, fire heroes) का छह महीने का प्रशिक्षण सहित चार साल का कार्यकाल होगा। पूरा होने पर उन्हें स्थायी संवर्ग के लिए आवेदन करने का अवसर दिया जाएगा और जिनमें से एक चौथाई को नियमित कैडर के रूप में नामांकित किया जाएगा। बाकी को लगभग ₹ 11.71 लाख के कर-मुक्त राशी के साथ बाहर जाना होगा और वह ‘राष्ट्र निर्माण’ में सहायता के लिए नागरिक जीवन में लौट आएंगे। भर्ती की प्रक्रिया 90 दिनों में शुरू होगी, जिसमें लगभग 46,000 युवाओं को शामिल किया जाएगा।

सरकार का दावा है कि नई योजना एक युवा, उपयुक्त रक्षा बल के निर्माण में मदद करेगी, जिसमें बदलते तकनीकी वातावरण में कर्मियों को अधिक प्रशिक्षित किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि यह सैन्य अनुशासन, लोकाचार और कौशल को एक मूल्य वर्धन के रूप में भी विकसित करेगा, उन नागरिकों के लिए संभावनाओं में सुधार करेगा जो समाज में लौट जायेंगे।

शुरुआत में, अगले चार वर्षों तक सशस्त्र बलों में कोई स्थायी भर्ती नहीं होगी। आलोचकों में सत्तारूढ़ भाजपा के भी कई लोग शामिल हैं, जिन्होंने सीमाओं पर संकट को देखते हुए परिचालन तैयारियों (operational preparedness) को संभावित नुकसान जैसी चिंताओं को उठाया है, जिसमें अल्पावधि के लिए काम पर रखे गए कर्मियों को जल्दबाजी में प्रशिक्षित किया जायेगा जिससे पेशेवर बलों के पास मौजूद सौहार्द की कमी रहेगी है।

यदि एक सैनिक की नौकरी अब एक संविदात्मक रोजगार (contractual employment) में बदल जाती है, तो यह उन उम्मीदवारों को प्रेरित नहीं कर सकती है जो नौकरी की सुरक्षा, पेंशन और सम्मान की उम्मीद करते हैं। यह तर्क कि रक्षा को रोजगार गारंटी योजना के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, अलंकारिक रूप से प्रभावशाली है, लेकिन तथ्य यह है कि हथियारों के निर्माण से लेकर सैनिकों के रोजगार तक, यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत जैसे देश के लिए, जहां बेरोजगारी एक बड़ी नीतिगत चुनौती बनी हुई है, चिंताओं को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता है। सरकार को इस बहुत ही विश्वसनीय आरोप का भी सामना करना पड़ रहा है कि यह लागत में कटौती की योजना से अधिक कुछ नहीं है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र को इस योजना को रोकना चाहिए और राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ परामर्श करके इस पर फिर से विचार करना चाहिए।

Source: The Hindu (18-06-2022)
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