आतंकवाद का मुकाबला: आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई

Countering terror

सभी देशों को नागरिक आबादी को निशाना बनाने वाले समूहों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आतंकवाद के खिलाफ बेहतर सहयोग की राह में आनेवाली जिन चार बाधाओं को गिनाया है, उनपर फौरन ध्यान देने की जरूरत है। श्री जयशंकर के मुताबिक इन बाधाओं में आतंक के वित्तपोषण को राज्य द्वारा मिलने वाला समर्थन; अपारदर्शी एवं एजेंडा संचालित बहुपक्षीय तंत्र; स्थान विशेष के आतंकवादी समूह के अनुसार अपनाए जाने वाले दोहरे मापदंड एवं आतंकवाद का मुकाबला करने की कवायद का राजनीतिकरण और आतंक का “नया मोर्चा” (आतंकवादियों द्वारा ड्रोन और आभासी मुद्रा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग) शामिल है।

“आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध” और 9/11 के बाद शुरू किए गए प्रतिबंध व्यवस्था के छिन्न–भिन्न होने के मद्देनजर गुरुवार को भारत द्वारा आयोजित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की विशेष ब्रीफिंग- ‘ग्लोबल काउंटर टेररिज्म एप्रोच’ – का फोकस बिल्कुल सामयिक है। मसलन, 2021 में अफगानिस्तान से बाहर निकलने की जल्दबाजी में यूएनएससी के स्थायी सदस्यों, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूनाइटेड किंगडम ने तालिबान के साथ बातचीत करके, काबुल की सत्ता पर कब्जा करने में उनकी राह आसान करके और पाकिस्तान में उसके संचालकों को बच निकलने का मौका देकर प्रतिबंध व्यवस्था को सबसे बड़ा झटका दिया।

दूसरा, जैसाकि श्री जयशंकर ने बताया है, एक पी-5 देश (चीन) द्वारा इस साल लश्कर और जैश-ए -मोहम्मद के पांच नामित कारकूनों सहित पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित करने के प्रस्ताव पर अड़ंगा लगाना जारी है। अंत में, आतंकवाद का मुकाबला करने के वास्ते एक वैश्विक कार्यप्रणाली तैयार करने हेतु अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक सम्मेलन बुलाने के 1996 के भारत के प्रस्ताव को एकजुट होकर स्वीकार करने के बजाय पी-5 देश निराशाजनक रूप से ध्रुवीकृत और बंटे हुए हैं और यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध को लेकर भी उनका यही रवैया है।

इस परिदृश्य के मद्देनजर, यूएनएससी में अपने दो साल के कार्यकाल के आखिरी कुछ हफ्तों के दौरान इन मुद्दों को उजागर करने का नई दिल्ली का प्रयास बिल्कुल सटीक था क्योंकि उसने इस ब्रीफिंग के लिए भारत में संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद विरोधी समिति की बैठक, ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन और इंटरपोल का एक सम्मेलन जैसे आयोजनों के जरिए पर्याप्त तैयारी की थी।हालांकि, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुरक्षा परिषद के बाहर श्री जयशंकर और उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी के बीच चले गरमागरम वाकयुद्ध की ओट में यह ब्रीफिंग ढक सी गई मालूम होती है।

पाकिस्तान के “आतंकवाद का केंद्र” होने संबंधी श्री जयशंकर की टिप्पणियों के जवाब में, श्री भुट्टो ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ और 2002 के गुजरात दंगों के मसले पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाने का फैसला किया। पाकिस्तान का “डोजियर”, जिसमें उसके द्वारा यह दावा किया गया है कि लाहौर में हुए एक विस्फोट के पीछे भारत का हाथ है, अनिवार्य रूप से 26/11 के आतंकवादी हमलों के मास्टरमाइंड पर हमले से संबंधित है और यह समान रूप से पाकिस्तान सरकार के लश्कर प्रमुख हाफिज सईद के साथ संबंधों के साथ – साथ आतंकवाद के मसले पर वैश्विक धारणा को मलिन करने की उसकी चाहत को दर्शा रहा है।

सरकार के लिए यह बेहतर होगा कि वह इन सबसे परेशान होने के बजाय अपने हाथ में लिए गए काम- आतंकवाद के मुद्दे पर एकता की जरूरत और दुनिया भर में नागरिक आबादी के लिए खतरा बन रहे एक कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित लोगों के खिलाफ लड़ाई के लिए सभी देशों को संसाधन मुहैया कराने पर जोर देकर आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एजेंडा और आतंकवाद-विरोधी संरचना को “पुनर्जीवित” करने – पर अपना ध्यान केंद्रित करे।

Source: The Hindu (17-12-2022)