आंकड़ों की विसंगतियां: जीडीपी के संशोधित अनुमान

Data Dissonance

विकास को गति देने के लिए नीति-निर्माताओं को घरेलू मांग को बढ़ावा देना चाहिए

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किए गए जीडीपी के ताजा आंकड़ों में अक्टूबर-दिसंबर 2022 की तिमाही में विकास में और गिरावट होने का अनुमान लगाया गया है। यह एक मंदी है, जिसके लिए सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने बड़े पैमाने पर वर्ष-पूर्व की अवधि के आंकड़ों में ऊपर की ओर संशोधन को जिम्मेदार ठहराया है।

सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष-पूर्व की तिमाही के स्तर से 4.4 फीसदी की वृद्धि हुई है, जोकि पिछले तीन महीनों में दर्ज की गई 6.3 फीसदी की रफ्तार के मुकाबले एक उल्लेखनीय गिरावट है और अक्टूबर-दिसंबर 2021 की अवधि के दौरान हुई 5.2 फीसदी की वृद्धि से भी पीछे है। सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) वृद्धि दूसरी तिमाही के 5.5 फीसदी के स्तर से लुढ़कते हुए 4.6 फीसदी पर जा पहुंची है, क्योंकि विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) से संबंधित अनुमानों में जुलाई-सितंबर के अपेक्षाकृत तीखे संकुचन (शून्य से 3.6 फीसदी नीचे) के बरक्स एक निरंतर संकुचन (शून्य से 1.1 फीसदी नीचे) की संभावना जताई गई है।

क्रमिक आधार पर भी विनिर्माण क्षेत्र सिकुड़ता हुआ जान पड़ता है (शून्य से 2.4 फीसदी नीचे)। महत्वपूर्ण व्यापार, होटल, परिवहन सहित पांच में से तीन सेवा क्षेत्रों और संचार के साथ-साथ वित्तीय, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवा श्रेणियों में विकास भी दूसरी तिमाही के स्तर से तेजी से धीमा हो गया, जो यह दर्शाता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुए सघन संपर्क वाले क्षेत्र की मांग में देखी गई वृद्धि घटने लगी है।

व्यय के मोर्चे पर, मुख्य आधार माने जाने वाले निजी अंतिम उपभोग व्यय ने अपनी गति थोड़ी खो दी है और कुल सकल घरेलू उत्पाद में इसकी प्रतिशत हिस्सेदारी वर्ष-पूर्व की तिमाही में 63 फीसदी के स्तर से घटकर 61.6 फीसदी रह गई है। ऐसा पारंपरिक त्योहारी तिमाही में हुआ जब उपभोग खर्च आम तौर पर चरम पर होता है। यह चिंता का सबब है और यह बताता है कि खुदरा मुद्रास्फीति में निरंतर तेजी उपभोग की क्षमता को कम कर रही है।

हालांकि सीईए ने कहा है कि अगर साल-दर-साल आधार पर वृद्धि की गणना के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले वर्ष-पूर्व विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन के आंकड़े असंशोधित रहते, तो यह क्षेत्र वास्तव में एनएसओ अनुमान में दिखाए गए 1.1 फीसदी के सिकुड़न के बजाय 3.8 फीसदी का वृद्धि दर्ज कर रहा होता। इसी तरह उन्होंने यह दावा किया है कि अगर संशोधन से पहले आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया होता, तो तीसरी तिमाही के दौरान निजी उपभोग खर्च में एनएसओ के ताजा आंकड़ों में इंगित 2.1 फीसदी के बजाय लगभग छह फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई होती।

तब भी, उपभोग खर्च में छह फीसदी की वृद्धि दूसरी तिमाही के 8.8 फीसदी की वृद्धि के मुकाबले कमतर ही होती। इससे यह साफ हो जाता है कि विकास की रफ्तार कम हो रही है। सकल निश्चित पूंजी निर्माण, जो नई क्षमता में विभिन्न व्यवसायों द्वारा किए गए निवेश को दर्शाता है, क्रमिक आधार पर  सिकुड़ा है और जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी जुलाई-सितंबर की अवधि के 34.2 फीसदी के स्तर से फिसलकर 31.8 फीसदी पर पहुंच गई है।

वैश्विक मांग के काफी कमजोर होने और 2023 के दौरान इसके संभलने की संभावना नहीं होने तथा संभावित प्रतिकूल मौसम के खतरों के बीच आने वाले महीनों में कृषि उत्पादन के मामले में अनिश्चितता बढ़ने के मद्देनजर नीति निर्माताओं को घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए सब कुछ झोंकने की जरूरत होगी। जैसा कि केंद्रीय बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने अक्सर बताया है, आंकड़ों में किए गए संशोधनों ने अनिवार्य रूप से इस दिशा में कुछ सार्थक करना बेहद मुश्किल बना दिया है। यह नीतिगत समाधानों को तैयार करने की चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। 

Source: The Hindu (03-02-2023)