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चिंताजनक बढ़ोतरी: खुदरा मुद्रास्फीति का मामला

Economics Editorial

Economics Editorial in Hindi

Disturbing dilation

बेलगाम मुद्रास्फीति का जोखिम घरेलू उपभोग को नुकसान पहुंचा रहा है

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के इस बयान के ठीक पांच दिन बाद कि मुद्रास्फीति ने ‘नरमी के संकेत दिखाए हैं और सबसे बुरा दौर बीत चुका है’, सोमवार को जारी किए गए जनवरी माह के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुमानों ने कीमतों में इजाफे के रुझान के एक चिंताजनक उलटफेर का खुलासा किया। साल 2022 की अंतिम तिमाही में सितंबर के पांच महीने के उच्च स्तर 7.4 फीसदी से लगातार कम होने वाली खुदरा मुद्रास्फीति दर पिछले महीने 80 आधार अंकों की उछाल के साथ बढ़कर 6.5 फीसदी हो गई।

खाद्य पदार्थों की कीमतों में 175 आधार अंकों की आई उछाल के साथ उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति दिसंबर के 4.19 फीसदी स्तर से तेजी दिखाते हुए 5.94 फीसदी पर पहुंच गई। बेचैनी को बढ़ाने वाला एक तथ्य यह भी है कि जनवरी 2022 में मुद्रास्फीति पहले से ही छह फीसदी की ऊंचाई पर थी, जिसका सीधा मतलब यह हुआ कि साल-दर-साल आधार पर होने वाली वृद्धि एक अनुकूल आधार प्रभाव से रहित और पूरी तरह से कीमतों में इजाफे की रफ्तार में बढ़ोतरी की वजह से थी।

सर्दियों की आपूर्ति के मांग से ज्यादा रहने की वजह से सीपीआई के12-सदस्यीय खाद्य एवं पेय पदार्थों उप-समूह में सब्जियां ही एकमात्र ऐसी वस्तु थी जिनकी कीमतों में साल-दर-साल आधार पर 11.7 फीसदी की गिरावट होने के बावजूद खाद्य पदार्थों की समग्र कीमतों में बढ़ोतरी हुई। अनाजों, जिसमें चावल और गेहूं शामिल हैं और जिनका इस उप-समूह में सबसे भारी लगभग 10 फीसदी का वजन होता है, की कीमतों में 16.1 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस उप-समूह में दूसरे सबसे भारी वजन वाले दूध एवं अन्य डेयरी उत्पादों की कीमतों में 8.79 फीसदी की तेजी देखी गई।

नीति निर्माताओं को विशेष रूप से अनाज की कीमतों में महीने-दर-महीने के आधार पर 2.6 फीसदी की बढ़ोतरी को लेकर चिंतित होना चाहिए क्योंकि यह भोजन पर अपनी आय का बड़ा हिस्सा खर्च करने वाले ग्रामीण परिवारों पर प्रतिकूल असर डालता है। कुल ग्रामीण उपभोग में 12.4 फीसदी वजन के साथ, अनाज की कीमतों ने जनवरी की समग्र ग्रामीण मुद्रास्फीति दर में 6.85 फीसदी की तेज गति से इजाफा किया।

कीमतों के रुझानों में इस चिंताजनक उलटफेर से यह पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति को लेकर की जाने वाली उम्मीदें कहीं भी स्थिर नहीं हैं। लिहाजा आरबीआई और राजकोषीय अधिकारियों, दोनों को आगे की नीतिगत कार्रवाइयां करने की जरूरत होगी। निश्चित रूप से श्री दास ने पिछले सप्ताह न सिर्फ ब्याज दर में 25 आधार-बिंदुओं की बढ़ोतरी की ऐलान किया, बल्कि आरबीआई द्वारा टिकाऊ अवस्फीति सुनिश्चित करने वाली एक नीति बनाने का वादा भी किया।

मुख्य मुद्रास्फीति या खाद्य एवं ईंधन की कीमतों के असर को खत्म करने वाली कीमतों में बढ़ोतरी के छह फीसदी से ऊपर बने रहने और वास्तव में दिसंबर के 6.22 फीसदी के मुकाबले पिछले महीने 6.23 फीसदी तक बढ़ने से नीति निर्माताओं के सामने मुद्रास्फीति के रुझानों से जुड़े कारकों को दुरुस्त करने की चुनौती है, जिसे ऋण लागत बढ़ाकर और मांग को कम करके किया जा सकता है। स्वास्थ्य और व्यक्तिगत देखभाल सहित कई अहम सेवा श्रेणियों में मुद्रास्फीति के आरबीआई द्वारा निर्धारित छह फीसदी की ऊपरी सीमा से ऊपर रहने और कीमतों में लगातार तेजी आने को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने सहित विभिन्न उपायों पर विचार करना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति के बोझ को कम करने में मदद मिल सके।

इस साल विदेशी मांग के कमजोर रहने के मद्देनजर, बेलगाम मुद्रास्फीति का जोखिम घरेलू उपभोग और इस प्रकार समग्र आर्थिक विकास को नुकसान पहुंचाएगा।

Source: The Hindu (15-02-2023)
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