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आगे बढ़कर अगुवाई: “ग्लोबल साउथ समिट” की आवाज और जी20 की अध्यक्षता

International Relations Editorials

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जी20 शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भारत को दक्षिणी दुनिया के देशों (ग्लोबल साउथ) की आवाज बुलंद करनी चाहिए

भारत सरकार द्वारा नेतृत्व-स्तर के अपने पहले बड़े जी20 के कार्यक्रम के रूप में “वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट” नाम से जाना जानेवाले विकासशील देशों के शिखर सम्मेलन का आयोजन, एक बेहद ही महत्वपूर्ण संकेत है। यह दुनिया के अधिक न्यायसंगत नजरिए और वैश्विक असमानताओं से विकासशील दुनिया के प्रभावित होने की तरफ ध्यान केंद्रित करने के मद्देनजर नई दिल्ली द्वारा वैश्विक नेतृत्व के “शीर्ष देशों”, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच सदस्य देश (पी-5) और जी-7 (सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाएं) के साथ उसके अपने संबंध शामिल हैं, का मुंह जोहने की नीति से आगे बढ़ना भी है।

इस वर्चुअल शिखर सम्मेलन में अपने शुरुआती संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बदलाव के वजहों की व्याख्या करते हुए बताया कि: कैसे “कोविड महामारी की चुनौतियों, ईंधन, उर्वरक और खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों और बढ़ते भू-राजनैतिक तनावों ने हमारे विकास के प्रयासों को प्रभावित किया है”। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी दक्षिणी दुनिया के देशों के साथ एक साझा भविष्य की कल्पना करने और दक्षिणी दुनिया के देशों, जिनमें से कई उपनिवेशवाद से पीड़ित रहे हैं, के साथ भारत के “साझा अतीत” को कबूल करने की भारत की जरूरत के बारे में बात की।

कुल 10 अलग-अलग सत्रों में, भारत और जी-77 के 134 सदस्य देशों में से 125 देशों के प्रतिनिधियों ने इस बात पर सहमति जाहिर की कि प्रमुख मुद्दों में यूक्रेन युद्ध और आतंकवाद के चलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य का विखंडन, अनाज के निर्यात, तेल एवं गैस और उर्वरक की उपलब्धता में कमी शामिल हैं। विकास की कीमत पर जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों में तेजी लाने के “पहली दुनिया” के नजरिए के बरक्स श्री मोदी द्वारा “मानव केंद्रित” वैश्वीकरण, दक्षिणी दुनिया के देशों की कौशल से लैस आबादी के लिए आप्रवासन एवं कामकाज संबंधी आवाजाही सुनिश्चित करने और अक्षय ऊर्जा तक सुदृढ़ पहुंच को तवज्जो दिया जाना बेहद काबिलेगौर था।

यह शिखर सम्मेलन जी20 की अध्यक्षता वाले साल में भारत की विदेश नीति के नजरिए में एक व्यापक बदलाव को रेखांकित करता है। पहला, सरकार गुटनिरपेक्षता के सही अर्थों पर दोबारा से तवज्जो देने पर मजबूर हुई है, जहां उसने यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर किसी का भी पक्ष लेने से इनकार कर दिया। विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी की क्यूबा की यात्रा के रूप में भारत ने जी77 (एक ऐसा समूह जिसे भारत ने दरकिनार कर दिया था) की अध्यक्षता संभाली और गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में निर्गुट आंदोलन के सह-संस्थापक, मिस्र के राष्ट्रपति को न्योता देना भी महत्वपूर्ण है।

इस शिखर सम्मेलन से पाकिस्तान और अफगानिस्तान को दूर रखा जाना काबिलेगौर रहा। गौर करने लायक तथ्य तो इस सम्मेलन में म्यांमार, जिसके जुंटा शासन को मान्यता नहीं दी गई है लेकिन जिसके साथ भारत ने घनिष्ठ संबंध बनाने का विकल्प चुना है, को शामिल किया जाना भी रहा। यह उम्मीद की जाती है कि वैश्विक मुद्दों पर दक्षिण-दक्षिण की सामूहिक समझ शिखर स्तर पर, विशेष रूप से दक्षिण एशियाई और उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय समस्याओं के संदर्भ में, अपेक्षाकृत अधिक समावेशी बैठक को संभव बनाएगी।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस समूह ने कोई साझा या संयुक्त बयान जारी नहीं किया और इसके नतीजों के जुड़ा नजरिया बहुत कुछ श्री मोदी और श्री जयशंकर ने जो कहा, उसके आधार पर तैयार किया गया है। भारत को ‘जी20 में दक्षिणी दुनिया के देशों की आवाज‘ के रूप में सुना जाए, इसके लिए उसे अन्य देशों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए और उन्हें इस साल के अंत में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान विकासशील दुनिया के एक सच्चे नेता के रूप में बुलंद करना चाहिए। 

Source: The Hindu (17-01-2023)
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