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बैंकिंग संकट के सबक: सिलीकॉन वैली बैंक प्रकरण

Economics Editorial

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Lessons learnt

रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे बैंक वैश्विक संकट और कुप्रबंधन से बचे रहें

पिछले हफ्ते अमेरिका के वेस्ट कोस्ट में एक डूबते हुए बैंक ने वैश्विक बाजारों को उस दौर की याद दिला दी जब लीमैन दिवालिया हुआ था। लीमैन जैसी घटना के दुहराव की आशंका ने दुनिया भर में बैंकिंग शेयरों में तेज गिरावट पैदा की और निवेशकों ने सोने जैसी सुरक्षित परिसंपत्तियों में हड़बड़ी में निवेश करना शुरू कर दिया। शुक्रवार के बाद बीते चार दिनों के दौरान हालांकि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के नियामकों ने बैंकिंग प्रणाली में जनता के विश्वास को बढ़ाने के लिए तत्परता के साथ काम किया है।

फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एफडीआइसी) ने पहले कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली बैंक का अधिग्रहण किया, फिर रविवार को न्यूयॉर्क स्थित सिग्नेचर बैंक को नियंत्रण में ले लिया। इसके बाद उसने फेडरल रिजर्व और ट्रेजरी विभाग के साथ मिलकर यह घोषणा की कि दोनों बैंकों में जमाकर्ताओं को पूरा भुगतान किया जाएगा, हालांकि दोनों बैंकों के शेयरधारकों को कोई सुरक्षा नहीं दी जाएगी।

सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने देश और वैश्विक बाजारों को आश्वस्त करने की कोशिश की कि अमेरिका एक लचीली बैंकिंग प्रणाली बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और वह ऐसी विफलताओं के दुहराव को रोकने के लिए बैंकों के लिए कठोर नियम बनाएगा। ऐसे समन्वित कदमों ने, कम से कम अभी के लिए, अधिकांश बाजारों में कुछ हद तक राहत बहाल की है। इस बीच कुछ ऐसे सबक हैं जो सीख लिए गए हैं, जबकि कुछ अन्य ऐसे सबक भी हैं जिन्हें शायद समय रहते सीखा जा सके।

सिलिकॉन वैली बैंक का मामला काफी अनोखा है। इसके जमाकर्ता ज्‍यादातर सिलिकॉन वैली के स्टार्ट-अप और उद्यमी पूंजीपति हैं, लिहाजा भौगोलिक और क्षेत्रीय रूप से वे एक जगह केंद्रित हैं। बैंक ने अमेरिकी ट्रेजरी और मॉर्गेज बांड के पोर्टफोलियो में बड़े पैमाने पर निवेश किया था। मुद्रास्फीति से जूझ रहे फेडरल रिजर्व द्वारा हाल ही में ब्याज दर में की गई तीव्र वृद्धि के परिणामस्वरूप इन बॉन्‍डों को बहुत घाटा हुआ था और इनकी कीमत किसी संकट की स्थिति में बेचने के लिहाज से बहुत महंगी हो गई थी।

दूसरी ओर, सिग्नेचर बैंक ने डिजिटल परिसंपत्तियों में निवेश करने वालों को सेवाएं प्रदान करके अस्थिर क्रिप्टो मुद्राओं में काफी निवेश कर दिया था। इसके अलावा, जमा में हुए घाटे के कारण भी यह डूबने के कगार पर पहुंच गया। फिर भी, बैंक की विफलताओं के लिए फेडरल रिजर्व की मौद्रिक सख्ती को दोषी ठहराना कारण के बजाय लक्षण पकड़ने जैसा होगा। ब्याज दरें चक्रों में चलती हैं और समूची बैंकिंग प्रणाली मूल रूप से ब्याज दर की चाल से जुड़े जोखिमों के प्रबंधन पर टिकी है, साथ ही यह सुनिश्चित करने में कि कर्ज देने के लिए स्वीकार किया जाने वाला जमा हमेशा आय या होल्डिंग्स के साथ मेल खाता हो ताकि निकासी में दिक्‍कत न आए।

भारतीय रिजर्व बैंक ने 2018 में बैंकों को एक ‘इनवेस्‍टमेंट फ्लक्‍चुएशन रिजर्व’ बनाने की सलाह दी थी, जो एक किस्‍म से ब्‍याज के चक्र की काट है जिसने भारतीय कर्जदाताओं को ब्याज दर की जोखिमों से अपेक्षाकृत बचाए रखा है। फिर भी, आरबीआइ को चौकस रहना होगा कि न तो वैश्विक संकट और न ही प्रबंधन की किसी गलती से किसी भी स्थानीय ऋणदाता को खतरा पैदा हो।

Source: The Hindu (16-03-2023)
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