मेहनत की कमाई: राज्यों को मनरेगा का आवंटन रोका जाना

Laboured wages: On MGNREGS payments to States

मनरेगा के लिए राज्यों को किए जाने वाले भुगतान में किसी भी किस्म की देरी अनैतिक है

राज्यसभा में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और तृणमूल कांग्रेस के सांसद जवाहर सरकार के बीच पश्चिम बंगाल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए धन रोके जाने को लेकर जोरदार बहस हुई। धन रोके जाने की वजह से मजदूरी के भुगतान में देरी हो रही है। गैर-लाभकारी संगठन लिबटेक इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 26 दिसंबर, 2021 से अब तक, किए गए काम के लिए मजदूरों को 2,744 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया।

नरेगा अधिनियम की धारा 3 में दर्ज प्रावधानों के तहत भुगतान में देरी नहीं की जा सकती। इस देरी की वजह से, राज्य में मनरेगा योजना के तहत काम करने वाले परिवारों की संख्या में गिरावट आई है। महामारी के वर्षों के दौरान 77 लाख से गिरकर चालू वित्त वर्ष में यह संख्या 16 लाख रह गई है। मौजूदा संख्या, कोविड से ठीक पहले के साल में इस योजना के तहत काम करने वाले 49.25 लाख परिवारों से भी कम है। केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि “केंद्र के निर्देशों का पालन न करने” की वजह से सिर्फ पश्चिम बंगाल में धन आवंटन रोका गया है और यह मामला धन के दुरुपयोग से जुड़ा है।

हालांकि, तृणमूल कांग्रेस की प्रतिक्रिया वाजिब है। राज्य ने धन के दुरुपयोग और श्रमिकों को धन न दिए जाने से जुड़ी प्रतिक्रियाओं का जवाब दिया। तथ्य यह है कि यह दुरुपयोग, कथित तौर पर अनुदान के सिर्फ एक हिस्से को कवर करता है। इससे पता चलता है कि केंद्र सरकार द्वारा मजदूरों को बेवजह दंडित किया जा रहा है।

मनरेगा की मजदूरी में देरी, एक पुरानी समस्या रही है। मनरेगा देश के सबसे गरीब ग्रामीण परिवारों के लिए एक तरह का बीमा होने के अलावा, महामारी के वर्षों में वरदान साबित हुआ है। इससे न सिर्फ गांवों में रहने वाले लोगों को रोजगार मिला, बल्कि शहरों से पलायन कर वापस गांव लौटे प्रवासी मजदूरों को भी इससे आसरा मिला। इस साल की शुरुआत में राज्यों को धन के वितरण में देरी, सरकारी प्रक्रिया की वजह से हुई। सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (वित्त मंत्रालय) में हुए व्यापक बदलाव की वजह से ऐसा हुआ।

अगर सरकार ने वित्त वर्ष की शुरुआत में ही पर्याप्त धनराशि निकालकर अलग कर दी होती, तो यह समस्या खड़ी नहीं होती। दुरुपयोग पर नकेल कसने पर जोर देना जरूरी है। खासकर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस योजना का उपयोग वाकई सार्वजनिक कार्यों के लिए किया जाता है या नहीं। लेकिन, तकनीकी वजहों से इससे कार्यान्वयन को बाधित करना गलत है। सरकार ने अब कार्यस्थल पर मनरेगा के लिए “डिजिटल अटेंडेंस” को अनिवार्य कर दिया है, लेकिन ऐसी जगहों पर तकनीकी सहायता, स्मार्टफोन रखने की अनिवार्यता, और कार्यस्थल पर सक्रिय इंटरनेट कनेक्शन जैसे मुद्दों को पूरी तरह हल नहीं किया गया।

मांग आधारित कार्य आवंटन के मूल विचार को कायम रखते हुए, मनरेगा जैसी योजना में और विस्तार होना चाहिए। इसे बोझ समझने से वास्तविक लाभार्थियों को ही नुकसान होगा।

Source: The Hindu (29-12-2022)