A green promise
छोटे उद्यम हरित अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हो सकते हैं
कुछ अनिवार्य खर्चों की वजह से वैश्विक स्तर पर हाइड्रोजन के कुल उत्पादन में हरित हाइड्रोजन का हिस्सा फिलहाल एक फीसदी से भी कम है और भारत का लक्ष्य ऐसे हाइड्रोजन का एक वैश्विक औद्योगिक केंद्र एवं निर्यातक बनना है। भले ही यह एक नेक महत्वाकांक्षा है, लेकिन एक उच्च-प्रौद्योगिकी वाला ‘मैन्यूफैक्चरिंग हब’ बनने का भारत का “ट्रैक रिकॉर्ड” 2030 तक इस लक्ष्य को हासिल करने को लेकर संदेह पैदा करता है। अपनी तमाम नीतियों के बावजूद, भारत सौर सेल, अर्धचालक या पवन ऊर्जा से संबंधित घटकों का शुद्ध निर्यातक बनने में कामयाब नहीं हो पाया है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि ‘मैन्यूफैक्चरिंग’ से संबंधित भारत का अंतर्निहित आधार कमजोर बना हुआ है और वह वैश्विक पूंजी को कुशलतापूर्वक आकर्षित और उसका उपयोग करने में नाकाम है। अपनी महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए, भारत को अपने छोटे “मैन्यूफैक्चरिंग” और संबद्ध उद्यमों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा जो बड़े उद्योगों के बजाय किसी भी हरित अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार साबित होंगे।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 17,490 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन (एनजीएच) मिशन को मंजूरी दे दी है। इस मिशन का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा से हाइड्रोजन के उत्पादन को सुविधाजनक बनाना है। हाइड्रोजन एक जरूरी औद्योगिक ईंधन है और अमोनिया के उत्पादन से लेकर स्टील एवं सीमेंट बनाने तक तथा बसों एवं कारों को चलाने वाले ईंधन सेल को शक्ति देने समेत इसके उपयोग की एक लंबी श्रृंखला है।
हालांकि, इसे बनाने का सबसे सस्ता तरीका कोयला और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहना है और इस प्रक्रिया में कार्बन का उत्सर्जन होता है। ग्लोबल वार्मिंग की चिंता और वैकल्पिक ईंधन को क्रमिक लेकिन निरंतर तरीके से अपनाए जाने के चलन ने सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से हाइड्रोजन के उत्पादन में दुनिया की रुचि को बढ़ा दिया है। हालांकि, उत्पादन का यह तरीका तुलनात्मक रूप से महंगा है।
कोयले से एक किलोग्राम हाइड्रोजन का उत्पादन करने में 0.9 अमेरिकी डॉलर से लेकर 1.5 अमेरिकी डॉलर के बीच और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादन करने में 3.5 अमेरिकी डॉलर से लेकर 5.5 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम के बीच की लागत आती है। लेकिन जिस तरह से भारत में सौर ऊर्जा की दरें अब कोयले से बनी बिजली के मुकाबले कम हुईं हैं, उससे सरकार को यह उम्मीद है कि ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ या पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा से उत्पादित होने वाले हाइड्रोजन का खर्च जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हाइड्रोजन बनाने की मौजूदा लागत से भी कम होगा।
एनजीएच मिशन का मकसद भारतीय उद्योग के लिए हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और कुछ मुख्य केंद्रों से लेकर उत्पादन केंद्रों तक उसके परिवहन से जुड़े बुनियादी ढांचे को विकसित करने के वास्ते एक अनुकूल वातावरण बनाना है, जहां इसका इस्तेमाल विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जा सके। एनजीएच मिशन पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने के लिए बिजली का इस्तेमाल करने वाले इलेक्ट्रोलाइजरों के उत्पादन के लिए धन उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध है।
हालांकि, इसका विस्तृत ब्यौरा अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। वर्ष 2030 तक, कम से कम पांच मिलियन मीट्रिक टन सालाना हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, 60-100 गीगावाट की इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता और हरित हाइड्रोजन एवं उससे जुड़े ‘ट्रांसमिशन नेटवर्क’ के लिए 125-गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य है।