कोई कपोल – कल्पना नहीं: केन्द्र सरकार की यादगार योजनाओं का सवाल

Not a pipe dream

नल का पानी एक बुनियादी जरूरत है, जिसे सभी घरों को मुहैया कराया जाना चाहिए

अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले सरकार जिन यादगार योजनाओं को मिसाल के तौर पर पेश करने की उम्मीद कर रही है, उनमें जल जीवन मिशन (जेजेएम) शामिल है। यहां मकसद 2024 तक हरेक ग्रामीण परिवार को पाइप के जरिए पानी उपलब्ध कराना है। बजट भाषण में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2022 के 54,808 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमानों की तुलना में 69,684 करोड़ रुपये का प्रावधान करके इस योजना के आवंटन में 27 फीसदी की बढ़ोतरी की।

हालांकि, यह परिव्यय इस बात को दर्शाता है कि किस कदर काम अभी बाकी है। अगस्त 2019 तक लक्षित 19.3 करोड़ ग्रामीण घरों में से सिर्फ 3.2 करोड़ घरों को पाइप के जरिए पानी मिल पाया था। जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी जेजेएम डैशबोर्ड का कहना है कि फरवरी 2023 तक 11 करोड़ से अधिक घरों या निर्धारित लक्ष्य के लगभग 57 फीसदी हिस्से में अब नल का पानी उपलब्ध है। भले ही यह तीन सालों में प्रतिशत अंकों के लिहाज से एक प्रभावशाली उछाल है, लेकिन सिर्फ 12 महीनों में बाकी बचे 47 फीसदी घरों में नल के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कर पाना मुश्किल होगा।

अब तक सिर्फ गोवा, गुजरात, हरियाणा और तेलंगाना ने ही शत – प्रतिशत पात्र घरों में पाइप के जरिए पानी की उपलब्धता की सूचना दी है। पंजाब और हिमाचल प्रदेश में लगभग 97 फीसदी से अधिक घरों में पाइप के जरिए पानी पहुंच चुका है। इन्हें छोड़कर, सिर्फ 10 अन्य राज्यों या केन्द्र – शासित प्रदेशों ने 60 फीसदी से अधिक कवरेज की सूचना दी है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े आबादी वाले राज्यों ने तो महज 30 फीसदी और मध्य प्रदेश ने लगभग 47 फीसदी कवरेज की सूचना दी है।

पूरी तरह से चालू हालत वाले नल के पानी के एक कनेक्शन को एक ऐसे घर के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसे पूरे साल प्रति व्यक्ति रोजाना कम से कम 55 लीटर पीने योग्य पानी मिलता है। हालांकि, स्थानीय रिपोर्टों से यह पता चलता है कि नल कनेक्शन होने के बावजूद कई गांव के घर अपने स्थानीय भूजल संसाधनों की तरफ वापस लौट गए हैं क्योंकि आपूर्ति किए गए नल के पानी की गुणवत्ता पर्याप्त नहीं है। इस योजना के कुछ स्वतंत्र आकलन मौजूद हैं।

इस योजना के कामकाज का आकलन करने के लिए जल संसाधन मंत्रालय द्वारा लगभग 3,00,000 पात्र घरों में कराए गए एक नमूना सर्वेक्षण में यह पाया गया कि उनमें से सिर्फ तीन-चौथाई घरों ने ही सप्ताह में सातों दिन पानी की आपूर्ति की सूचना दी। और औसतन, इन घरों को दिन में सिर्फ तीन घंटे ही पानी मिल रहा था। यों तो आंगनवाड़ी और स्कूलों जैसे 90 फीसदी से अधिक संस्थानों ने नल के पानी की उपलब्धता की सूचना दी, लेकिन उनमें से कई ने पानी में भारी मात्रा में क्लोरीन के साथ-साथ जीवाणुओं से दूषित होने की समस्या बताई।

इसके अलावा, इस योजना को अपनाने वाले घरों की वर्तमान संख्या खुद गांवों द्वारा की गई रिपोर्टिंग पर आधारित है और यह आंकड़ा किसी तीसरे पक्ष द्वारा प्रमाणित नहीं है। बिहार जैसे कुछ राज्यों ने कहा है कि उनके अधिकांश कनेक्शन राज्य की निधि के तहत प्रदान किए गए हैं, न कि जेजेएम के तहत। पूरी तरह चालू हालत वाली जलापूर्ति या नल के पानी की स्थायी सुविधा एक बुनियादी जरूरत है और सरकार को सिर्फ एक संख्यात्मक लक्ष्य तक पहुंचने के उद्देश्य के बजाय ग्रामीण भारत में नल के पानी की गुणवत्ता और इस सुविधा को निरंतर अपनाए जाने के पैमाने का मूल्यांकन करने का प्रयास करना चाहिए।

नीचे से ऊपर की ओर जाने वाली एक योजना के तौर पर इस योजना का खाका बनाते वक्त केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस योजना को सबसे कम अपनाने वाले और सबसे बड़ी आबादी वाले राज्यों के लाभार्थी घरों की संख्या बढ़ाने के लिए सहायता दी जाए, न कि सिर्फ उन राज्यों को सुविधा महैया कराई जाए जो लक्ष्य पाने के करीब हैं।

Source: The Hindu (14-02-2023)