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पुरानी पेंशन योजना: पुरानी चीज हमेशा बेशकीमती नहीं होती

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Old is not gold

पुरानी पेंशन योजना चुनावी रणनीति के लिहाज से कारगर हो सकती है, लेकिन यह एक अविवेकपूर्ण राजकोषीय नीति है

हिमाचल प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा यह दोहराए जाने के साथ कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली नवनिर्वाचित सरकार पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करेगी, यह राज्य अब ऐसा करने वाला देश का चौथा राज्य बन जाएगा।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अंतिम प्राप्त मूल वेतन के 50 फीसदी पर पेंशन की गारंटी देने वाले ओपीएस की बहाली के वादे ने संकटग्रस्त कांग्रेस पार्टी को मजबूती दी क्योंकि सरकारी कर्मचारी और सेवानिवृत्त लोग इस पहाड़ी राज्य के कुल मतदाता वर्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा चुनाव के बाद किए गए एक सर्वेक्षण ने इस तथ्य की तस्दीक की कि लोगों की जागरूकता (सर्वेक्षण में शामिल 74 फीसदी) और कांग्रेस पार्टी के वादे के प्रति समर्थन काफी ज्यादा (70 फीसदी) था।

इसने संभवतः कांग्रेस पार्टी को भाजपा को शिकस्त देने की हैसियत में लाने में एक अहम भूमिका निभाई। दोनों पार्टियों के मत प्रतिशत में महज एक फीसदी का फासला था। ऐसा लगता है कि सरकारी कर्मचारी इस योजना को पसंद करते हैं क्योंकि यह उन्हें 2004 में शुरू की गई राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की परिकल्पना के उलट कर्मचारी पेंशन निधि में उनके मूल वेतन एवं महंगाई भत्ते के 10 फीसदी हिस्से का योगदान करने से बचने की इजाजत देता है।

लेकिन इसके साथ ही, ओपीएस की ओर वापस लौटने से राज्य के खजाने पर बोझ बढ़ेगा। आंकड़े बताते हैं कि पेंशन भुगतान राज्यों के अपने कर राजस्व का लगभग 25.6 फीसदी, लेकिन राज्यों की कुल राजस्व प्राप्तियों के 12 फीसदी के करीब है। हिमाचल के संदर्भ में, पेंशन भुगतान राज्य के कर राजस्व का 80 फीसदी है। सरकारी कर्मचारियों के भत्ते और वेतन की वजह से आर्थिक बोझ काफी ज्यादा होना तय है। ओपीएस की ओर वापस लौटने वाले राज्य कुछ अल्पकालिक फायदा हासिल कर सकते हैं क्योंकि उन्हें कर्मचारी पेंशन फंडों के लिए 10 फीसदी का समान योगदान देने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन एक बड़ी तादाद के मद्देनजर, भुगतान का बोझ आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा।

इस योजना के वित्तपोषण के लिए और ज्यादा कर लगाकर राज्य के राजस्व को बढ़ाने का एक तर्क दिया जा सकता है। लेकिन कर्मचारियों को उनके वेतन से उनके पेंशन कोष में सरकार के समान योगदान के साथ योगदान करने की इजाजत देने वाला पहले से मौजूद एनपीएस कहीं ज्यादा ठोस है क्योंकि इस कोष का निवेश पेंशन फंड प्रबंधकों के जरिए किया जाता है और यह राज्य के बोझ को कम करता है। वक्त गुजरने के साथ एनपीएस ने पर्याप्त कोष और ग्राहक आधार बना लिया है।

कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वाकई पिछले एनडीए शासन द्वारा शुरू किए गए पेंशन सुधारों को आगे बढ़ाया था और इस तरह एनपीएस पिछले कुछ सालों में प्रासंगिक बन गया है। पेंशन सुधारों को लेकर बनी एक आम सहमति से अलग होना और ओपीएस की ओर वापस लौटना एक अविवेकपूर्ण विकल्प है क्योंकि इससे सिर्फ संगठित सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों को फायदा होगा, इन भुगतानों को वहन करने की वजह से वित्तीय बोझ बढ़ेगा और इसमें राज्य के बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खपेगा, जिससे कुल मिलाकर आम जनता के कल्याण पर होने वाले परिव्यय में कमी आएगी।

यह योजना इस लिहाज से अच्छी है कि इससे अल्पकालिक चुनावी फायदा मिलता है और उन लोगों का हित सधता है, जो सरकारी मशीनरी की रीढ़ हैं।

Source: The Hindu (16-12-2022)
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