स्रोत: द हिन्दू (05-09-2022)
Perils of brinksmanship
बीते एक सितंबर को ताइवान की सेना द्वारा एक चीनी ड्रोन को मार गिराए जाने के कदम से ताइवान जलडमरूमध्य में पहले से ही जारी तनाव में एक नया मोड़ आ गया है। नई परिस्थिति भले ही अप्रत्याशित है, लेकिन यह तनाव के चरम की ओर बढ़ने और उससे पैदा होने वाले जोखिमों को उजागर करती है। पिछले महीने अमेरिकी संसद की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की यात्रा के बाद, चीन की सेना ने हाल के हफ्तों में ताइवान के आसपास अभूतपूर्व सैन्य अभ्यास किया है। इस युद्धाभ्यास की कुछ गतिविधियां ताइवान जलडमरूमध्य की मध्यरेखा के पार चीनी सेना की घोषणा के मुताबिक उस समुद्री इलाके में भी की गईं जिसपर ताइवान का दावा है।
ताइवान ने शांत रहते हुए पीएलए के युद्धपोतों के साथ नहीं उलझने का फैसला किया। इस युद्धाभ्यास की पृष्ठभूमि में, चीनी सेना ने बाद में ताइवान के हवाई क्षेत्र में ड्रोन भेजकर बीजिंग के क्षेत्रीय दबदबे को जारी रखने का फैसला किया। इतना ही नहीं, ताइवान के सैन्य कर्मियों की करीब से ली गई तस्वीरों को भी सोशल मीडिया पर साझा किया गया। जाहिर है, यह सब बीजिंग की क्षमताओं को प्रदर्शित करने के इरादे से किया गया। लेकिन इस प्रक्रिया में ताइपे पर जवाबी प्रतिक्रिया करने का दबाव बढ़ा।
ताइवान की सेना ने बताया कि उसने कई चेतावनियों के बाद शियू द्वीप में अपने हवाई क्षेत्र के ऊपर मंडरा रहे एक ‘अज्ञात असैन्य ड्रोन’ को मार गिराने का फैसला किया। एक सैन्य ड्रोन को मार गिराने पर चीन की ओर से अलग किस्म की प्रतिक्रिया मिल सकती थी। शायद यही वजह रही कि अब तक इस घटना को ज्यादा तूल नहीं दिया गया है। अब जबकि चीनी सेना कथित तौर पर सैन्य और असैन्य-उपयोग वाले दोनों किस्म के ड्रोन की तैनाती कर रही है, लिहाजा जलडमरूमध्य के पार फ़ुज़ियान में आम निवासियों द्वारा ड्रोन को लेकर किया गया कोई भी गलत आकलन एक गंभीर घटना की चिंगारी बनने का जोखिम पैदा कर सकती है।
ड्रोन की इस तैनाती ने पहले से ही जारी तनावपूर्ण स्थिति को और अधिक उलझा दिया है। पिछले महीने के घटनाक्रमों ने निश्चित रूप से इस क्षेत्र की मौजूदा यथास्थिति की नाजुकता और खासतौर पर इस स्थिति को बदलने की चीन की चाहत की एक बार फिर से याद दिलायी है। भले ही अधिकांश प्रेक्षकों का यह मानना है कि निकट भविष्य में चीन द्वारा ताइवान पर चढ़ाई का फैसला कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व के लिए बेहद जोखिम भरा होगा, लेकिन इस तनाव की स्थिति में अनचाही बढ़ोतरी की संभावना से इन्कार भी नहीं किया जा सकता।
भारत सहित अधिकांश देशों ने ‘एक चीन नीति’ और चीन के साथ जटिल संबंधों के मद्देनजर ताइवान के मसले से दूर रहना ही पसंद किया है। लेकिन जल्द ही उन्हें इस गंभीर संकट से उपजे सुरक्षा संबंधी निहितार्थों का आकलन करने की जरूरत होगी। इस क्रम में वैश्विक स्तर पर सेमी-कंडक्टर उद्योग की एक धुरी के रूप में ताइवान की स्थिति एक महत्वपूर्ण पहलू है। जलडमरूमध्य के “सैन्यीकरण” को लेकर की गई भारत की हालिया टिप्पणी भले ही उसके नजरिए में एक बड़े बदलाव का संकेत नहीं देती है, लेकिन नई दिल्ली ने ताइवान के साथ विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में रिश्ता और अधिक बढ़ाने की इच्छा दिखाई है। मसलन, सेमी-कंडक्टरों के उत्पादन के लिए भारत में एक वैकल्पिक आधार स्थापित करना। यह देर से ही सही, लेकिन सही दिशा में उठाया एक वाजिब कदम है।