बचाव की कार्रवाई: कार दुर्घटना में होने वाली मौतों का मामला

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कार दुर्घटना में होने वाली मौतों को सीट बेल्ट के प्रयोग से काफी हद तक कम किया जा सकता है

स्रोत: द हिन्दू (06-09-2022)

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकरी दी थी कि 2021 में कुल 1,55,622 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे। सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की यह तादाद 2014 के बाद से सबसे अधिक थी। इस रिपोर्ट के जारी होने के कुछ ही दिनों बाद,  उद्योगपति एवं टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष  साइरस मिस्त्री और उनके एक सहयात्री की जान रविवार को महाराष्ट्र के पालघर के पास एक कार दुर्घटना में चली गई। पुलिस सूत्रों के मुताबिक यात्रियों ने सीट बेल्ट नहीं पहन रखी थी। इस दुखद और टाली जा सकने वाली दुर्घटना से कार में सुरक्षा उपायों की तैनाती और सड़क सुरक्षा अधिकारियों द्वारा इन उपायों का सख्ती से पालन कराने की जरूरत के बारे में जागरूकता अब बढ़नी चाहिए। आज यह तथ्य अच्छी तरह पता है कि सीट बेल्ट और एयरबैग उपकरण जैसे कम लागत वाली अंकुश प्रणाली के उपयोग से कार यात्रियों की मौतों को कारगर ढंग से कम करने में मदद मिली है। नवंबर 2021 में आईआईटी दिल्ली के परिवहन अनुसंधान और चोट निवारण केंद्र (ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च एंड इंजरी प्रिवेंशन सेंटर) द्वारा तैयार की गई एक सड़क सुरक्षा रिपोर्ट में उद्धृत अध्ययनों में यह आकलन किया गया है कि “एयर-बैग के इस्तेमाल से मृत्यु दर में 63 फीसदी की कमी हुई … लैप-शोल्डर-बेल्ट के इस्तेमाल ने मृत्यु दर को 72 फीसदी तक कम कर दिया और एयर-बैग एवं सीटबेल्ट के सम्मिलित उपयोग से मृत्यु दर में 80 फीसदी से अधिक की कमी आई।” सुरक्षा उपायों के पालन में कोताही बरतने के कारण भारी संख्या में होने वाली मौतों (सड़क परिवहन मंत्रालय का अनुमान है कि 2017 में हुई दुर्घटनाओं में सीट बेल्ट का उपयोग न करने के कारण 26,896 लोग मारे गए थे) के बावजूद सीट बेल्ट के उपयोग के बारे में जागरूकता हालांकि समय के साथ पहले के मुकाबले बढ़ी है, फिर भी कार में पीछे की सीट पर बैठने वाले यात्रियों द्वारा बेल्ट का इस्तेमाल लगभग न के बराबर है। यह एक शर्मनाक बात है क्योंकि अमेरिका के हाइवे सेफ्टी से जुड़े बीमा संस्थान के एक अध्ययन से पता चलता है कि किसी कार दुर्घटना में पीछे की सीट पर बेल्ट लगाकर बैठे यात्रियों की तुलना में बिना बेल्ट वाले यात्रियों को गंभीर चोट लगने की संभावना आठ गुना अधिक होती है। इसका अन्य पहलू यह भी है कि हेडरेस्ट का उचित इस्तेमाल दुर्घटनाओं के दौरान गर्दन में मोच के कारण होने वाली चोटों को कम करने में भी मदद करता है।

आईआईटी दिल्ली की रिपोर्ट में एक और चिंताजनक पहलू की ओर इशारा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की सड़कों की कुल लंबाई में राष्ट्रीय राजमार्गों का हिस्सा भले ही दो फीसदी है, लेकिन वे सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 36 फीसदी की हिस्सेदारी करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस किस्म की दुर्घटनाओं में यात्रियों की मौत और चोटों की आशंका की वजह तेज गति से गाड़ी चलाना थी। यह तथ्य एनसीआरबी के इन निष्कर्षों के अनुरूप है कि 2021 में भारत की 56 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं तेज गति से गाड़ी चलाने की वजह से हुईं। लेकिन एक सच यह भी है कि अधिकांश सड़क दुर्घटनाओं में कारण का निर्धारण करने के क्रम में पुलिस अक्सर ‘चालक की गलती’ का आसान राग अलापती है। सड़क सुरक्षा रिपोर्ट बताती है कि परिस्थिति की गंभीरता के लिहाज से एनसीआरबी के आंकड़े काफी कमतर हैं और सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने का एकमात्र तरीका साक्ष्य-आधारित, भारत की हकीकतों के अनुरूप और कारगर सड़क सुरक्षा नीतियां बनाना है। इन नीतियों में दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार खराब सड़क डिजाइन एवं रखरखाव और यातायात के बुनियादी ढांचे जैसे समग्र कारकों पर गौर करना शामिल है। इंटरसिटी हाईवे पर माध्यिकाओं को हटाकर उसकी जगह स्टील या तार के अवरोधकों के इस्तेमाल के सुझाव पर भी विचार किया जाना चाहिए।