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अंधाधुंध होड़: जोशीमठ के दरकने का मामला

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Reckless spree: Joshimath issue

अधिकारियों को विज्ञान और खानों एवं बांधों के पास रहने वाले लोगों की बात सुननी चाहिए

जोशीमठ में जमीन का धंसना एक ऐसी भूवैज्ञानिक आपदा का प्रतीक बन गया है, जो हकीकत में देश भर में संसाधनों के दोहन की कई बड़ी परियोजनाओं के आसपास जाहिर हुआ है। झरिया, भुरकुंडा, कपासरा, रानीगंज और तलचर के कोयला खदानों से; भूजल के अत्यधिक दोहन की वजह से दिल्ली तथा कोलकाता से; और हाइड्रोकार्बन की वजह से मेहसाणा से जमीन धंसने की खबरें आई हैं।

पिछले साल हिमाचल प्रदेश के चंबा में एक पनबिजली परियोजना शुरू होने के कुछ ही समय बाद जमीन धंसना शुरू हो गया था और इस घटना ने उत्तराखंड में जोशीमठ के पास तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना की वजह से पड़ने वाले असर को लेकर सवाल उठा दिया था। वर्ष 2010 में, एक सुरंग खोदने वाली मशीन के जोशीमठ के पास एक भूमिगत जलभृत (एक्वीफर) से टकराने के कुछ महीनों बाद बड़े पैमाने पर पानी का बहाव हुआ था। इसके बारे में दो शोधकर्ताओं ने ‘करंट साइंस’ में लिखा था कि “इस इलाके में जमीन धंसने की प्रक्रिया” को प्रेरित करने वाले “अचानक और बड़े पैमाने पर पानी के बहाव की आशंका है”।

वर्तमान में चल रही घटना का कोई सीधा रिश्ता 2009 के ‘एक्वीफर पंक्चर’ से है या नहीं, यह निर्धारित कर पाना इस इलाके में दीर्घकालिक वैज्ञानिक अनुसंधान के अभाव में थोड़ा जटिल है। एनटीपीसी ने 5 जनवरी को एक बयान जारी कर सामने आए इस संकट से अपने हाथ उस समय झाड़ लिए जब स्थानीय लोगों ने चार धाम परियोजना के हिस्से के रूप में तपोवन विष्णुगढ़ के साथ-साथ हेलंग-मारवाड़ी बाईपास परियोजना पर उंगली उठानी शुरू की।

काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर-एनजीआरआई) के वैज्ञानिक 10 जनवरी को जमीन धंसने की परिस्थितियों का पता लगाने के लिए रवाना हुए हैं। केन्द्र और राज्य, दोनों सरकारों को इस टीम के निष्कर्षों पर ध्यान देना चाहिए, भले ही इसका आशय आगे के निर्माण कार्य पर रोक लगाना ही क्यों न हो।

विशेषज्ञों और नागरिक समाज के लोगों ने कई मौकों पर सरकार से उत्तर और पूर्वोत्तर के इलाकों में नदियों पर बांध बनाने की होड़ को कम करने; इन इलाकों के टिकाऊ बने रहने के लिए यहां पर्यटन को नियंत्रित रखने; और सड़कों को चौड़ा करने के लिए अस्थिर पहाड़ियों में विस्फोट करके उन्हें नहीं उड़ाने का आह्वान किया है। जुलाई में आइजोल में हुई भारी बारिश ने जमीन धंसने की प्रक्रिया को प्रेरित किया और इसने खराब जोनिंग प्रवर्तन और क्षेत्रीय वहन क्षमता के उल्लंघन को उजागर किया।

लेकिन भूस्खलन के लिहाज से खासतौर पर संवेदनशील जोशीमठ में जोनिंग, वहन क्षमता और दरकने के बिंदु से जुड़े सभी सवालों को परे रख दिया गया है। जोशीमठ में जमीन धंसने की घटना ने पूरे देश का ध्यान इसलिए खींचा है क्योंकि यह तीर्थयात्रियों और पर्यटकों, दोनों का एक पसंदीदा गंतव्य है और इस किस्म की पहली या सबसे घातक घटना का स्थल होने से कोसों दूर रहा है। जोशीमठ में मरम्मत और जीर्णोद्धार के जो भी प्रयास हो रहे हैं, उन्हें सरकार को अन्य सभी स्थलों पर भी अमल में लाना चाहिए।

अंत में, केन्द्र और राज्य सरकारों को विज्ञान और खानों एवं बांधों के पास रह रहे लोगों की बात सुननी चाहिए। भले ही आर्थिक रूप से विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन के मामले में स्थिर होने से पहले उन्हें अधिक उत्सर्जन करने की इजाजत देने का एक तर्क है, लेकिन इसे जलवायु न्याय की कीमत पर प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की खुली छूट नहीं बनना चाहिए।

Source: The Hindu (12-01-2023)
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