Sage stance
दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए मूल्य स्थिरता बेहद जरूरी है
लगातार तीन बार आधे प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी के बाद, दरों को 35 ‘बेसिस पॉइंट’ तक ले जाने के दिसंबर के फैसले के उपरांत एमपीसी द्वारा दरों में 25 ‘बेसिस पॉइंट’ (बीपीएस) की मामूली बढ़ोतरी का ऐलान, यह दिखाता है कि विकास दर में गिरावट उसके संज्ञान में है और वह बढ़ी हुई क्रेडिट दर के महामारी के बाद की रिकवरी के लिए चुनौती साबित हो सकने से अवगत है।
फिर भी भारतीय अर्थव्यवस्था ज्यादा लचीली साबित होने, खासकर संपर्क आधारित सेवाओं और विवेकाधीन खर्चों के लिए घरेलू मांग में आई उछाल से, मौद्रिक नीति निर्माताओं को कुछ हद तक राहत मिली है। यह आगमी वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों के लिए जीडीपी विकास के अनुमानों को बढ़ाने के फैसले से भी जाहिर हुआ। आरबीआई ने वित्त वर्ष 24 की पहली तिमाही के लिए अपने विकास के अनुमान को 70 बीपीएस ज्यादा बढ़ाकर इसे 7.8 फीसदी कर दिया है, जबकि दूसरी छमाही के लिए इसमें 30 बीपीएस की कटौती कर 6.2 फीसदी किया है।
श्री दास का यह दावा कि मौद्रिक नीति को “टिकाऊ अवस्फीति सुनिश्चित करने के लिए, तैयार किया जाना चाहिए”, आईएमएफ के तीन अर्थशास्त्रियों द्वारा हाल ही में लिखी गई एक ब्लॉगपोस्ट से मेल खाता है। इसमें इन अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी थी कि केंद्रीय बैंकों को दृढ़ता दिखाने की जरूरत है क्योंकि नीति में ‘समय से पहले ढील देने’ से कीमत में तेज उछाल आता है। ऐसे में देश बाकी किसी भी झटके को झेलने के लिए तैयार नहीं हो पाते। आखिरकार, किसी भी अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक सुधार के लिए, मूल्य स्थिरता एक बहुत जरूरी आधार है।
भले ही यह बढ़ोतरी बहुत मामूली हो, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक का अपनी बेंचमार्क नीति दर को फिर से बढ़ाने का फैसला, टिकाऊ तौर पर मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में बढ़ाया गया एक स्वागत योग्य कदम है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का मुख्य फैसला, खुदरा मुद्रास्फीति को 4 फीसदी के लक्ष्य की ओर ले जाने का है, लेकिन मुख्य मूल्य लाभ बीते 20 महीनों से 6 फीसदी के आस-पास या इसके ऊपर टिका हुआ है।
इन सबको देखते हुए, दरों को निर्धारित करने वाले पैनल ने 4-2 के मत से नीति को सख्त बनाने के पक्ष में फैसला लिया। गवर्नर शक्तिकांत दास ने मुद्रास्फीति पर एमपीसी के जबर्दस्त तवज्जो की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ‘मुद्रास्फीति की उम्मीदों को कसकर रखने और कोर मुद्रास्फीति में आई स्थिरता को तोड़ने’ से मध्यम अवधि के लिए विकास की संभावनाएं सबसे अच्छी होंगी।
एमपीसी ने इस बात पर जोर दिया कि नवंबर और दिसंबर के दौरान खुदरा मूल्य में बढ़ोतरी के ढीले पड़ने के लिए खबर में आने के बावजूद, विकास की संभावनाओं की राह में मुद्रास्फीति मुख्य चुनौती बनी हुई है। पैनल ने 2022 के आखिर में सब्जियों की कीमतों में आई गिरावट की ओर इशारा किया और कहा कि गर्मी शुरू होने और कीमतों में तेजी आने से यह रुझान खत्म हो सकता है।
खासकर चीन में कोविड संबंधित ज्यादातर प्रतिबंधों के खत्म होने से, जिन्सों (कमोडिटी) की कीमतों में वैश्विक स्तर पर उछाल देखने को मिल सकती है। ‘ब्रेंट फ्यूचर्स’ में हालिया तेजी और यूक्रेन युद्ध के लगातार सघन होने की संभवनाएं यह बताती है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत के लिए औसतन 95 डॉलर प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत का जो अनुमान लगाया है, वह गलत साबित हो सकता है।