मुद्रास्फीति के जोखिमों से सतर्क रहना
मुद्रास्फीति का जोखिम विकास और व्यापक आर्थिक स्थिरता को कम करता है

नवीनतम खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक और केंद्र सरकार द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए किए गए ठोस प्रयासों का प्रभाव, मूल्य में वृद्धि (price gains) की गति को कुछ धीमा करने पर पड़ा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) द्वारा मापा गयी मूल्य वृद्धि, मई के 7.04% से जून में लगभग 7.01% तक कम हो गयी, जिसमें खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (food price inflation) 22 आधार अंकों से घटकर 7.75% हो गई।
खाद्य और पेय पदार्थों की टोकरी वाली 12 वस्तुओं में से – जो CPI के लगभग आधे वजन के लिए ज़िम्मेदार है – दालों और खाद्य तेलों की कीमतें दोनों पिछले महीने की तुलना में कम हो गयी हैं। खाना पकाने के प्रमुख माध्यम की कीमतें, जो आपूर्ति (यूक्रेन और इंडोनेशिया से) के प्रभावों के बीच एक उबाल पर थीं, वह आयात शुल्क में कटौती से मदद मिलने के कारण कम हो गयी हैं। तेलों और वसा में साल-दर-साल मुद्रास्फीति पिछले महीने 390 आधार अंकों से घटकर 9.4% हो गई, जिसमें अनुक्रमिक आधार पर सूचकांक 0.7% सिकुड़ गया। और दालों की कीमतों में पिछले एक साल और पिछले महीने दोनों के मुकाबले गिरावट आई है। कीमतों में कमी का कारण परिवहन ईंधन में एक नीतिगत उपाय द्वारा करी गयी कमी है। मई में पेट्रोल और डीजल पर, उत्पाद शुल्क में केंद्र द्वारा कटौती, मुद्रास्फीति में एक महत्वपूर्ण कमी के रूप में, परिवहन और संचार सूचकांक में प्रकट हुई: साल-दर-साल, दर(rate) 260 आधार अंकों से 6.9% तक धीमी हो गई, जबकि क्रमिक रूप से यह 120 आधार अंकों तक सिकुड़ गई।
फिर भी, नीति निर्माताओं के लिए सावधान न रहना बहुत जल्दबाजी होगी। खाद्य और पेय पदार्थों की टोकरी में 12 वस्तुओं में से नौ के साथ, जो उप सूचकांक के लगभग 80% का प्रतिनिधित्व करते हैं और अनाज, दूध और मांस से लेकर सब्जियों, चीनी और मसालों तक फैले हुए हैं, अनुक्रमिक रूप से मूल्य में वृद्धि का अनुभव कर रहे हैं, सरकार को उपभोक्ताओं की रसोई में मुद्रास्फीति के दबाव को रोकने के लिए सतर्कता बनाए रखने की आवश्यकता है।
अनाज, मांस और दूध में साल-दर-साल मुद्रास्फीति, मई के मुकाबले जून में तेज हो गई, और सब्जियों के मूल्य में वृद्धि अभी भी 17.4% के साथ दोहरे अंकों पर बनी हुई है। मानसून वर्षा की प्रगति से आशा है कि आने वाले महीनों में कृषि उत्पादों की कीमतें कम हो सकती हैं, बशर्ते कि कुछ राज्यों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ से फसल उत्पादक क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। और जबकि हाल के सत्रों में वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में अच्छी-खासी नरमी ने कुछ राहत प्रदान करी है, डॉलर के मुकाबले रुपये के तेज मूल्यह्रास का मतलब है कि भारत ‘आयातित मुद्रास्फीति’ के संकट का सामना करना जारी रखेगा क्योंकि कच्चे तेल सहित आयात का बिल बढ़ता रहता है।
बड़े पैमाने पर खपत की कुछ वस्तुओं सहित कई वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाने के जीएसटी परिषद के निर्णय से कीमतों पर और ज्यादा दबाव बढ़ना भी तय है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मंगलवार को की गई टिप्पणी, प्राधिकरणों की इस मान्यता को दर्शाती है कि मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई में किसी भी तरह की कमी, विकास और व्यापक आर्थिक स्थिरता को कम करने के जोखिम में पड़ सकती है।