खतरनाक दांव: सीरिया के कुर्द इलाकों पर हमला

Dangerous gamble

तुर्की को खुद को मिली भू-राजनीतिक बढ़त का इस्तेमाल, सीरियाई कुर्दों पर हमला के लिए नहीं करना चाहिए

सीरिया के कुर्द बहुल शहरों पर तुर्की के हालिया हमले और जमीनी आक्रमण की उसकी धमकी, सीमावर्ती इलाके को अस्थिर कर सकती है। यह इलाका, अभी तक लंबे समय से चल रहे गृह युद्ध और इस्लामिक स्टेट (आईएस) आतंकवादी समूह की हिंसा से उबर नहीं पाया है। तुर्की के हमले की फौरी वजह, इस्तांबुल में 13 नवंबर का विस्फोट था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी। तुर्की ने इन धमाकों के लिए दक्षिण-पूर्वी इलाके में सक्रिय कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) और सीरिया के कुर्द उग्रवादी समूह पीपल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स (वाईपीजी) को जिम्मेदार ठहराया और सीरिया के कुर्द बहुल शहरों पर हवाई हमले कर दिए।

हालांकि ये दोनों संगठन, इन आरोपों को खारिज कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि तुर्की ने वाईपीजी से कहा है कि वह सीमा से सटे अहम शहरों- मनबिज, ताल रिफ़ात और कोबेन- को तुरंत खाली कर दे और अगर वाईपीजी ने इन शहरों को नहीं छोड़ा, तो तुर्की सीरिया में घुसकर एक और हमला करेगा। तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन, सीरिया में वाईपीजी नियंत्रित शहरों और तुर्की के कुर्द बहुल क्षेत्रों के बीच एक बफर जोन बनाना चाहते हैं।

तुर्की खुद अपनी सीमा के भीतर इन इलाकों में पीकेके से लड़ रहा है। अंकारा वाईपीजी को पीकेके के वैचारिक और संगठनात्मक साझेदार के रूप में देखता है, जिसे उसने अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ मिलकर आंतकवादी संगठन घोषित कर रखा है। तुर्की ने अतीत में भी सीरिया में कई हमले किए हैं और उन इलाकों को अपने नियंत्रण में रखा है जो अब सीरियन नैशनल आर्मी के काबू में है। यह आर्मी विद्रोहियों का एक व्यापक संगठन है जो दमिश्क के विरोध में है और इसे अंकारा का समर्थन हासिल है। लेकिन, तुर्की पर अब उसके नाटो सहयोगी देश संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा रूस का भी दबाव है।

अमेरिका वाईपीजी की अगुवाई वाली सेना का समर्थन करता है, जबकि रूस सीरियाई शासन के समर्थन में है और इन सेनाओं के ऑपरेशन पर अंकुश चाहता है। हालांकि, ऐसा लगता है कि रूस और यूक्रेन युद्ध ने इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक हालात को तुर्की के पक्ष में मोड़ दिया है। पहले से कई पचड़ों में फंसा रूस, अभी तुर्की का विरोध नहीं करना चाहेगा, जो नाटो का सदस्य होने के बावजूद अमेरिका की अगुवाई वाले प्रतिबंधों में शामिल नहीं हुआ और अमेरिका भी स्वीडन और फिनलैंड को नाटो में शामिल करने के लिए अंकारा का समर्थन चाहेगा। इससे, श्री एर्दोआन के लिए, सीरिया में आगे बढ़ने की राह आसान हो जाती है। हालांकि, अगर वह ऐसा करते हैं, तो यह दांव खतरनाक साबित हो सकता है।

आईएस ने 2014-15 में इनमें से ज्यादातर सीमावर्ती कस्बों पर कब्जा किया था। वाईपीजी ने अमेरिका की मदद से इस क्षेत्र को आईएस के कब्जे से मुक्त कराने के लिए कड़ा संघर्ष किया था। अब हमला झेल रही वाईपीजी ने एलान कर दिया कि वह कई सीमावर्ती शहरों में गश्त लगाना बंद कर देगी। तुर्की के हमले से अराजकता और बढ़ सकती है और इससे इस्लामी उग्रवादी संगठनों को फिर से इकट्ठा होने और पहले से युद्ध की मार झेल रहे दयनीय कुर्द लोगों पर हमले का एक और मौका मिल सकता है।

सैन्य रास्ता अपनाने के बजाय, श्री एर्दोआन को सीमावर्ती क्षेत्र में शांति बहाली की खातिर व्यावहारिक समाधान के लिए रूस और अमेरिका से बात करनी चाहिए जिनका सीरियाई कुर्दों के साथ बेहतर संबंध है।

Source: The Hindu (17-12-2022)