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चौड़ी होती दरारः अमेरिका-चीन के संबंधों में गिरावट

International Relations Editorials

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Widening rift

चीन और अमेरिका को अपने मतभेदों के चलते दुनिया का ध्रुवीकरण नहीं होने देना चाहिए

दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों के बीच के संबंधों में गिरावट तेजी से एक ऐसी स्थिति तक पहुंचती दिखाई दे रही है, जहां से कोई वापसी संभव नहीं है। निश्चित रूप से यह संदेश चीन की ओर से आया है, जहां संसद यानी नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के मौजूदा वार्षिक सत्र के दौरान चीनी नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों पर वाशिंगटन के रवैये को निशाने पर लिया है।

राष्ट्रपति के रूप में तीसरी बार पांच साल के लिए नियुक्त शी जिनपिंग ने 6 मार्च को एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल को बताया कि चीन “देश के विकास में अभूतपूर्व गंभीर चुनौतियों” का सामना कर रहा है क्योंकि “अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने चीन पर चौतरफा नियंत्रण और दमन को लागू किया है”। शी द्वारा सीधे तौर पर अमेरिका का नाम लेने का फैसला स्पष्ट बताता है कि दोनों देशों के बीच रिश्‍ते कितने खराब हो चुके हैं।

चीन के नए विदेश मंत्री किन गांग ने कहा कि अमेरिका “चीन को घेरने” की कोशिश कर रहा है। उन्होंने बाइडेन प्रशासन के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि ‘‘वह चीन से टकराव के बगैर उसे पछाड़ना चाहता है’’। उन्‍होंने कहा, ‘’…इसका मतलब है चीन को हर तरह से रोकना और दबाना’’। उन्होंने कहा कि “अगर अमेरिका इस पर लगाम नहीं कसता तो टकराव तय है।‘’

नवंबर 2022 में जी-20 की इंडोनेशिया में हुई बैठक में दोनों नेताओं ने कहा था कि वे प्रतिस्पर्धा को “जिम्मेदारी के साथ अंजाम” देने की अपेक्षा रखते हैं। अगर यही अपेक्षा थी, तो हालिया घटनाएं भरोसा नहीं जगाती हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की पिछले महीने की शुरुआत में प्रस्‍तावित चीन यात्रा इसलिए रद्द कर दी गई थी क्योंकि अमेरिका को अपने आकाश में एक चीनी गुब्‍बारा दिखा था। वॉशिंगटन ने इस “जासूसी गुब्बारे” को यात्रा की पूर्व संध्‍या पर एक गंभीर उकसावे के रूप में देखा था क्‍योंकि इस यात्रा का उद्देश्‍य संपर्क को दोबारा शुरू करना था।

चीन के अनुसार वह ‘मौसम विज्ञान संबंधी एक असैन्‍य हवाई यान’ था जिसे मार गिराने के अमेरिका के फैसले को लताड़ते हुए उसने कहा कि यह कार्रवाई चीन के मामले में अमेरिका के ‘उन्माद’ को दर्शाती है। दुनिया के बाकी हिस्सों के लिहाज से हाल की घटनाएं यही दर्शा रही हैं कि यह दरार अभी कायम रहने वाली है। अमेरिकी शत्रुता के चश्मे से बाकी दुनिया को देख रहा चीन अपने पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारते हुए यूरोप के साथ भी रिश्‍ते चमकाता दिखाई दे रहा है। बीजिंग इस साल एक अहम मध्य एशिया शिखर सम्मेलन की योजना बना रहा है, जबकि जापान के साथ उसके तनावपूर्ण संबंध गर्माते जा रहे हैं। इस बीच, अमेरिका इस क्षेत्र में गठबंधन और साझेदारियों का विस्‍तार कर रहा है।

भारत ने अब तक अपने हितों के मद्देनजर यूक्रेन युद्ध के नतीजों को कुशलता से प्रबंधित किया है, पर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के संकट के चलते उसके सामने एक अनूठी चुनौती पेश कर रहा है। क्वाड पर बीजिंग की बढ़ती मुखर आपत्तियों के बाद भारत को अपनी भू- सीमाओं पर निरंतर दबाव झेलने के लिए तैयार रहना होगा, हालांकि चीन और अमेरिका के बिगड़ते रिश्‍तों के चलते बीजिंग के गड़बड़ाते समीकरण पर भी भारत की निगाह है क्योंकि वह एक साथ दो मोर्चों पर जूझ रहा है और ताइवान उसकी प्राथमिक चिंता है। अनिश्चय और कठिन चुनौतियों के बीच तेजी से विभाजित हो रही दुनिया में अवसरों का फायदा उठाने के लिए भारत को पर्याप्त रूप से मुस्तैद रहना होगा। 

Source: The Hindu (11-03-2023)
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