Youth waiting for productive employment

नौकरियों के लिए इंतजार

केंद्र का कर्मियों की भर्ती करने का निर्णय बढ़ते बेरोजगारी के मुद्दे को नगण्य राहत देने वाला है

Social Rights

एक ऐसे राष्ट्र के लिए जिसके पास एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय विभाजन (demographic dividend) है – श्रमजीवी उम्र की आबादी गैर-श्रमजीवी आयु वर्गों की तुलना में बहुत बड़ी है – अपने युवाओं के लिए प्रभावी रोजगार (productive employment) ढूंढना भारत के लिए अनिवार्य है। फिर भी, पिछले कुछ वर्षों में, बेरोजगारी एक प्रमुख चिंता का विषय बनी हुई है – 2018 में लीक हुए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS/Periodic Labour Force Survey) से पता चला है कि भारत की बेरोजगारी दर चार दशकों में सबसे अधिक (6.07%) थी। नवीनतम PLFS से पता चलता है कि आंकड़े अब इतने कठोर नहीं है, 2019-20 में 4.8% की तुलना में 2020-21 में कुल बेरोजगारी दर 4.2% है और श्रम बल भागीदारी दर (LFPR/Labour Force Participation Ratio) जो 2019-20 में 40.1% थी, उससे बढ़कर 41.6% हो गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले आंकड़ों के संदर्भ में, बेरोजगारी की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति, 2020-21 में सभी व्यक्तियों के लिए 7.5% का आंकड़ा ,अभी भी चिंताजनक है।

लेकिन, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बेरोजगारी में कमी के बावजूद PLFS आंकड़े, सरकार के लिए बहुत खुशी नहीं लाएगा। PLFS के अनुसार इस कमी का कारण है, वेतनभोगी रोजगारों का अनुत्पदाक और अवैतनिक रोजगार में हस्तांतरण हो जाना। चिंताजनक रूप से, कृषि और खेती से संबंधित नौकरियों में अधिक रोजगार के साथ औद्योगिक नौकरियों में कमी आई है – एक प्रवृत्ति जो लॉकडाउन के बाद तेज हो गई है और तब से वैसी ही बनी हुई है। शिक्षित वर्ग (माध्यमिक शिक्षा से ऊपर – 9.1%) और युवाओं (15-29 – 12.9% के बीच की आयु) में बेरोजगारी की दर में केवल मामूली गिरावट आई है। पूर्व-महामारी की अवधि की तुलना में वेतनभोगी नौकरियों या स्व-नियोजित रोज़गारों में लोगों के लिए वेतन दर कम बनी हुई है, और महामारी के अगले वर्ष में वृद्धि मामूली है।

इस संबंध में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यह घोषणा, कि सरकार अगले 18 महीनों के भीतर 10 लाख कर्मियों की भर्ती करेगी (रेलवे, सशस्त्र बलों और जीएसटी विभागों में रिक्तियां), इसको सही दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि मार्च 2020 तक केंद्र सरकार के सभी नागरिक पदों के बीच 8.86 लाख नौकरियां खाली थीं।  श्री मोदी की घोषणा नई नौकरियों के एक बड़े हिस्से के सृजन के बारे में नहीं थी; वादा किए गए रोजगार का बड़ा हिस्सा रिक्तियों को भरना है। लेकिन इस उपाय से वास्तविक अर्थव्यवस्था में सुधार होगा जो अभी भी हताहत है, जोकि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के कुप्रबंधन और पिछले कुछ वर्षों में महामारी के प्रभावों का परिणाम है।

Source: The Hindu (17-06-2022)