Anchoring prices
बचतकर्ताओं और उपभोक्ताओं को फिर से विश्वास हासिल करने की जरूरत है कि कीमतें स्थिर रहेंगी
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक की नीति से संबंधित इस समिति में फैसलों को लेकर एक राय नहीं थी। इसके छह सदस्यों में से एक ने जहां नीतिगत दर को बढ़ाने के खिलाफ मतदान संभवतः इसलिए किया कि अभी तक जारी अस्थायी आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को धीमी न किया जा सके, वहीं दो सदस्यों ने ‘समायोजन की वापसी पर ध्यान केंद्रित’ करने के नीतिगत रुख से असहमति जताई।
हालांकि, बहुमत ने यह जोर देकर कहा कि “मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर रखने, मूल मुद्रास्फीति की जकड़न को तोड़ने और दूसरे दौर के प्रभाव को रोकने के लिए और अधिक ठोस मौद्रिक नीति से जुड़ी कार्रवाई की जरूरत है”। उनका तर्क है कि मूल्य स्थिरता आखिरकार ‘मध्यम अवधि के विकास की संभावनाओं को मजबूत करने’ की दिशा में काम करेगी। कुल मिलाकर, जैसाकि भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दूसरे दौर के प्रभाव मुद्रास्फीति को आठ तिमाहियों के बाद भी उच्च स्तर पर बनाए रख सकते हैं‘ और इसलिए मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप करना अनिवार्य था।
गवर्नर श्री दास ने यह भी बताया कि रेपो दर में ताजा बढ़ोतरी के बाद भी मुद्रास्फीति के लिए समायोजित किए जाने पर मानक ब्याज दर अभी भी बहुत ‘उदार‘ बनी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक के अपने उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण के नवंबर के दौर से यह पता चलता है कि उत्तरदाताओं का एक महत्वपूर्ण बहुमत मूल्य स्तरों में एक साल पहले गिरावट की उम्मीद और अपेक्षा करता है, जोकि उपभोक्ताओं की भावनाओं पर पड़ने वाले सबसे बड़े असर को दर्शाता है।
कुल मिलाकर, रक्षकों और उपभोक्ताओं को यह विश्वास हासिल करने की जरूरत है कि एक टिकाऊ आर्थिक सुधार में मदद करने के उद्देश्य से बचत और खरीदारी को फिर से शुरू करने के लिए कीमतें एक मध्यम अवधि में स्थिर बनी रहेंगी।
भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा नीति वक्तव्य में यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है कि अब मौद्रिक नीति का प्राथमिक ध्यान मूल्य स्थिरता पर होना चाहिए। खासकर उस समय जब रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने यह माना है कि “उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में कीमतों की गति ऊंची बनी हुई है”। मानक रेपो दर को 35 आधार अंकों से बढ़ाकर 6.25 फीसदी करने के मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के फैसले के पीछे के तर्क को स्पष्ट करते हुए, उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि कीमतों की गति में कमी के बावजूद ‘मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हुई है’।
खुदरा मुद्रास्फीति छह फीसदी की उच्चतम सहन सीमा के निशान से ऊपर बनी हुई है और इस वित्तीय वर्ष की अंतिम दो तिमाहियों में इसके पार जाने और फिर उस स्तर से नीचे आने का अनुमान है। एमपीसी ने यह स्वीकार करते हुए कि मुद्रास्फीति की उम्मीदें अब उसके अनिवार्य चार फीसदी के लक्ष्य से खासा ऊपर चली गईं हैं, अपने पूरे साल के सीपीआई मुद्रास्फीति के अनुमान को 6.7 फीसदी पर बनाए रखा। लेकिन, उसने तीसरी तिमाही और चौथी तिमाही के पूर्वानुमानों को क्रमशः 10 आधार अंकों से बढ़ाकर क्रमशः 6.6 फीसदी और 5.9 फीसदी कर दिया।
इससे भी बदतर बात तो यह है कि भोजन और ईंधन की लागतों को अस्थिर कर देने वाली मूल मुद्रास्फीति या कीमतों में बढ़ोतरी अधिकांश घटक उप-समूहों में कीमतों के दबावों के साथ छह फीसदी के स्तर के आस-पास बनी हुईं हैं। यह मूल्य स्थिरता के लिए आश्वस्त करने वाले पूर्वानुमानों से कोसों दूर है। खासकर यह देखते हुए कि कंपनियों की ओर से अपनी उच्च लागतों को उपभोक्ताओं की तरफ सरकाए जाने पर सेवाओं की मांग में तेजी से कीमतों में उछाल आने की संभावना है।