नावों को रोकनाः इंगलैंड का नया ‘अवैध प्रवासन कानून’

Stopping the boats

प्रवासियों के योगदानों का अनादर कर रहे हैं पश्चिमी देश

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, यूएनएचसीआर ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक द्वारा एक नया “अवैध प्रवासन कानून” पारित करने की योजना की कड़ी आलोचना की है। यह कानून अवैध रूप से यूनाइटेड किंगडम (यूके) पहुंचने वाले प्रवासियों को शरण देने से रोकने के लिए लाया जा रहा है। ‘स्टॉप द बोट्स’ (नावों को रोको) लिखे हुए एक मंच पर खड़े होकर सुनक ने कहा कि सरकार ब्रिटेन की यात्रा करने और ब्रिटेन की धरती पर शरण के लिए आवेदन करने का प्रयास करने वालों की संख्या को लेकर चिंतित है, जिससे देश के राजकोष पर बोझ पड़ रहा है।

गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने इस सप्ताह विधेयक पेश करते समय कहा था कि शरण चाहने वाले लोग जो अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश करते हैं, उन्हें या तो उनके देशों में वापस भेज दिया जाएगा या किसी “तीसरे देश” में भेज दिया जाएगा। यह तीसरा देश संभवतः रवांडा है, जिसने प्रवासियों के मामलों से संबंधित सुविधाओं के लिए एक समझौता किया है। ऐसे लोगों को नागरिकता और ब्रिटेन में फिर से प्रवेश पर आजीवन प्रतिबंध का भी सामना करना पड़ेगा।

यूएनएचसीआर के अनुसार, यह कानून अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करेगा, जिसमें 1951 की शरणार्थी संधि भी शामिल है, जिस पर ब्रिटेन ने हस्ताक्षर किए हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि जो लोग अपने घरों और देशों से भागते हैं, वे अकसर उचित कागजी कार्रवाई के बिना ऐसा करते हैं क्योंकि उन्हें अपना जीवन बचाने के लिए देश छोड़ने पर मजबूर किया जाता है। पिछले साल “छोटी नौकाओं” पर सवार होकर ब्रिटेन आने वाले अनुमानित 45,000 लोगों में से कई लोग राजनीतिक शरण के इच्‍छुक नहीं, बल्कि आर्थिक प्रवासी हैं और समस्या यह है कि ब्रिटिश सरकार दोनों के बीच अंतर नहीं करती है।

यह कानून उन लोगों को अपने दायरे से बाहर रखता है जो अपने देशों से सीधे यूके आते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्‍या कम है क्‍योंकि “छोटी नौकाओं” से कम दूरी की यात्रा ही की जा सकती है। अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन ने जिस तरह “बिल्ड दैट वॉल” का लोकलुभावन नारा दिया था, वैसे ही ब्रिटिश सरकार भी लंबे समय से सियासी बयानबाजी कर रही है।

ब्रिटिश सरकार का यह नारा राजनीतिक बयानबाजी के लिहाज से आकर्षक तो है, लेकिन प्रवासियों को लाने वाली छोटी नौकाओं को रोकने में विफल रहने की स्थिति में उसके पास इसे जमीन पर उतारने की कोई व्‍यावहारिक प्रणाली मौजूद नहीं है। इसके अलावा, शरण चाहने वालों को तीसरे देश में भेजे जाने की योजना अपनी प्रकृति में नव-औपनिवेशिक लगने के अलावा काफी महंगी भी साबित होगी, जिसका वहन असहाय प्रवासी नहीं कर पाएंगे।

छोटी नौकाओं को रोकने के इस ब्रिटिश कदम को आप्रवास विरोध और बाहरियों से भय के व्‍यापक राजनीतिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। ऐसे विश्‍वास अब अन्य लोकतंत्रों में भी मुखर हो रहे हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार में जबरन निर्वासित करने या नागरिकता (संशोधन) अधिनियम में धर्म के आधार पर भेदभाव करने की योजना पर पश्चिमी देश लंबे समय से भारत को अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियों का पाठ पढ़ाते रहे हैं। अब उन्हें खुद ऐसे कानूनों को लागू करने के मामले में आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि इससे दुनिया को क्‍या संदेश जाएगा।

इसके अलावा, एक बेहतर जीवन की तलाश में असुरक्षित मार्गों से पश्चिम के तट पर पहुंचने वाले ज्‍यादातर अवैध आप्रवासियों और शरण चाहने वालों को अस्वीकार करके पश्चिमी देश अपने समाजों में आप्रवासियों के वास्तविक योगदानों का भी अनादर कर रहे हैं। खुद सुनक और ब्रेवरमैन के माता-पिता भी ऐसे ही लोगों में शामिल रहे हैं, जिन्होंने कहीं ज्‍यादा अनुकूल दौर में पश्चिम के लिए अफ्रीकी तट को अलविदा कहा था।

Source: The Hindu (10-03-2023)