आकस्मिक रूझान: थोक मुद्रास्फीति का मामला

A fortuitous trend

मुद्रास्फीति में नरमी को जारी रखने के लिए इसे और अधिक व्यापक होना होगा

वर्ष 2022 का आखिरी महीना सालभर छाए रहे उच्च मुद्रास्फीति से कुछ राहत देता हुआ दिखाई दे रहा है। दिसंबर माह के दौरान उपभोक्ताओं द्वारा सामना की जाने वाली औसत मूल्य वृद्धि गिरकर नवंबर 2021 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर 5.7 फीसदी पर आ गई। सोमवार को जारी किए गए आंकड़ों से यह पता चलता है कि थोक मुद्रास्फीति भी नवंबर के 5.88 फीसदी से गिरकर 22 महीने के निचले स्तर 4.95 फीसदी पर आ गई। दिसंबर 2021 में थोक मूल्य में 14.2 फीसदी की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई थी, जिसने नरमी के प्रभाव को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया।

फिर भी, यह मई 2022 में 16.6 फीसदी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद से थोक मुद्रास्फीति में लगातार सातवें महीने आने वाली नरमी को इंगित करता है। और, यह लगातार चौथा महीना है जब खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर 2022 के 7.4 फीसदी से कम हुई है। नवंबर और दिसंबर के दौरान, खुदरा मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक की छह फीसदी की सीमा से नीचे रही है और थोक मूल्य वृद्धि उपभोक्ता कीमतों की तुलना में धीमी रही है।

यह इस बात का संकेत है कि उत्पादकों पर उच्च इनपुट लागतों को आगे हस्तांतरित करने का दबाव ढीला पड़ सकता है। अब जबकि सरकार चुनाव से पहले के बजट की तैयारियों में जुटी है, अक्टूबर-दिसंबर 2022 के 6.1 फीसदी के मुकाबले चालू तिमाही में औसतन 5.9 फीसदी की मुद्रास्फीति का अनुमान लगाने वाला भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और उपभोक्ता भी इस रुझान को इस साल कम कीमतों का वाहक बनने की उम्मीद कर रहे होंगे।

हालांकि, इन दो महीनों की नरम मुद्रास्फीति से महंगाई के मोर्चे पर सिर्फ इसलिए जरूरी राहत नहीं मिल सकी है क्योंकि कुछ अर्थशास्त्रियों की भाषा में ‘सनक भरे’ तत्व – ‘सब्जियों की कीमतों’ – का तुलनात्मक रूप से ज्यादा असर रहा है। अक्टूबर की लगभग आठ फीसदी की मुद्रास्फीति की तुलना में, नवंबर और दिसंबर के दौरान प्याज, टमाटर और आलू के सस्ते होने की वजह से सब्जियों की कीमतों में क्रमश: आठ फीसदी और 15 फीसदी की गिरावट आई। इससे खाद्य मुद्रास्फीति को नीचे तो आई, लेकिन भोजन पर होने वाला कुल घरेलू खर्च ज्यादा कम नहीं हो सका।

खाद्य टोकरी की सबसे बड़ी वस्तु – अनाजों (13.8 फीसदी के स्तर पर, गेहूं की कीमतों में 22 फीसदी की वृद्धि के साथ) की मुद्रास्फीति में लगातार छठे महीने तेजी आई। दालों, दूध, अंडे, मांस एवं मछली और मसालों की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखी गई। यहां तक ​​कि गैर-खाद्य वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में भी लगातार वृद्धि देखी गई, चाहे वह कपड़ों का मामला हो या जूते, व्यक्तिगत देखभाल का सामान, घरेलू सामान या फिर स्वास्थ्य और शिक्षा का।

सब्जियों की अस्थिर कीमतों को अलग रखते हुए, जो खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर में सात फीसदी थी और वह हेडलाइन मुद्रास्फीति के रुझानों को धता बताते हुए दिसंबर में 7.2 फीसदी तक पहुंच गई। खाद्य और ऊर्जा को अलग रखकर मूल्य वृद्धि को मापने वाली मूल मुद्रास्फीति भी बढ़ी है और जैसाकि आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी को रोकने के बढ़ते हंगामे के बीच दोहराया है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। शून्य कोविड की सख्त नीति को छोड़कर चीन की अर्थव्यवस्था के दोबारा से शुरू होने के साथ, वैश्विक जिन्सों और तेल की कीमतों में फिर से तेजी आ सकती है।

मुद्रास्फीति की समस्या से नज़रें हटाना अभी जल्दबाजी होगी, जो विशेष रूप से ग्रामीण मांग को चोट पहुंचती है और  बहुप्रतीक्षित निजी निवेश योजनाओं को बाधित करती है।

Source: The Hindu (18-01-2023)