The cyberweapons factor may involve in the Russia-Ukraine conflict

रूस-यूक्रेन युद्ध में 'सी' कारक

इस बारे में बहुत कम स्पष्टता है कि दोनों पक्षों ने किस हद तक साइबर हथियार का उपयोग किया है - इसमें अंतर्निहित कारण हो सकते हैं

International Relations

रूस-यूक्रेन संघर्ष के दूसरे 100 दिनों में, दुनियाभर में उन कारणों के बारे में अटकलें लगायी जा रही हैं कि क्यों रूसी सशस्त्र बल बहुत छोटी यूक्रेनी सेना से निपटने में तथाकथित रूप से विफल रही है। यह एकतरफा दृष्टिकोण प्रतीत हो सकता है, लेकिन रूस ने अभी तक वह हासिल नहीं किया है जिसे वर्तमान संघर्ष के किसी भी क्षेत्र में निर्णायक जीत कहा जाये।

रूस की प्रतिक्रिया का विश्लेषण

रूसी सेना के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए पश्चिम देशों के विशेषज्ञों द्वारा कई कारणों से जोड़ा गया है। अक्सर उल्लेख किया जाता है: प्रेरणा की कमी और यूक्रेन को भेजे गए रूसी बलों में मनोबल कि कमी, जिनमें से कई जबरदस्ती भारती किये गये थे, जिन्हें खूनी संघर्ष में भाग लेने की बहुत कम इच्छा थी; रूसी सशस्त्र बलों के उच्च और मध्य / निचले पायदानों के बीच विश्वास की अनुपस्थिति, जिससे परिचालन स्तर (operational level) पर एक अभाव रहा; आधुनिक परिस्थितियों में सूचनात्मक युद्ध (informationalised war) से लड़ने के लिए रूसी हथियार पुराने और अप्रभावी प्रतीत हो रहे हैं, जबकि यूक्रेन वर्तमान में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और पश्चिमी शक्तियों से उदार सहायता के साथ लड़ रहा है।

बेशक, रूसी कमांडर भी एक निर्धारित दुश्मन के खिलाफ युद्ध के मैदान की स्थिति में योजनाओं को तैयार करने और उचित निर्णय लेने में अयोग्य साबित हुए हैं। जब संघर्ष शुरू हुआ था, तब अनुमान यह था कि यूक्रेन कुछ हफ्तों में ही रूस के अधीन हो जायेगा, लेकिन उस समय के परिप्रेक्ष्य को देखते हुए उसके उलट हुआ, इसने पश्चिम में उस भावना के प्रकट होने में योगदान दिया कि रूस के सशस्त्र बलों को अतिरंजित (वास्तविकता से अधिक मूल्यांकन/overrated) किया गया है, और यह कि वे पश्चिम के लोकतांत्रिक देशों के लिए जो खतरा पैदा करते हैं, उसको भी बहुत बढ़ा-चढ़ा के कहा गया है।

हालांकि, सावधानी कभी नहीं खोना चाहिए। कई दशकों से अपनी सेना पर रूस का खर्च यूरोप के हर दूसरे देश की तुलना में कहीं अधिक रहा है, जिसमें दो सबसे अधिक सैन्यीकृत देश शामिल हैं, अर्थात्, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस। भले ही अब रूस के सशस्त्र बलों की अजेयता के बारे में सवाल उठाए जा रहे हों, रूस का सशस्त्र शस्त्रागार, जिसका हाल के दिनों में कई अवसरों पर सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाता रहा है, को नज़रंदाज़ करना ठीक नहीं है। वास्तविकता यह है कि रूस के अधिकांश उन्नत हथियारों को यूक्रेन संघर्ष में नियोजित नहीं किया गया है – इसका कारण क्रेमलिन को भलीभांति ज्ञात है – और, इसलिए, पश्चिम को अन्धविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए, और रूस की सैन्य ताकत को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए, ऐसा न हो कि यह गुमराह तत्वों को किसी भी खतरनाक ‘दुस्साहस’ को शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करे।

‘साइबर’ की भूमिका

रूस के निराशाजनक प्रदर्शन के कारणों को कहीं और खोजने की आवश्यकता है। यह देखते हुए कि साइबर को अक्सर युद्ध के पांचवें आयाम के रूप में माना जाता है, यह जांचना सार्थक हो सकता है कि क्या यह वास्तव में पहला प्रमुख संघर्ष है जिसमें ‘साइबर’ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिससे साइबर क्षमताओं से लेस एक कमजोर राष्ट्र को अपने लाभ के लिए इसका उपयोग करने की अनुमति मिलती है।

चूँकि जनता की याददाश्त कम होती है, क्योंकि यह केवल एक दशक पहले कि बात है जब संयुक्त राज्य अमेरिका के एक प्रतिष्ठित राष्ट्रपति, बराक ओबामा ने चेतावनी दी थी कि संघर्ष या अन्यथा की स्थिति में, साइबर हमले ‘पूरे शहरों को अंधेरे में’ डुबो देंगे। कुछ साल पहले एक पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्री ने, यहां तक कि राष्ट्रों को पंगु बनाने और भेद्यता की गहरी भावना पैदा करने के लिए एक संभावित ‘साइबर पर्ल हार्बर’ की बात की थी। इसी तरह, कुछ साल पहले, अमेरिकी खुफिया समुदाय ने चेतावनी दी थी कि उनका राष्ट्र खतरे में है क्योंकि उत्तर कोरियाई कार्यकर्त्ता, अमेरिका के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के अंदर ‘साइबर हथियारों’ को पहले से ही स्थापित करने की स्थिति में थे, ताकि युद्ध की स्थिति में उन्हें उपयोग किया जा सके। आज, पश्चिम नियमित रूप से रूसियों को, राष्ट्रों को नष्ट करने के लिए साइबर-रणनीति का उपयोग करते हुए चित्रित करता है।

रूसी सैन्य कुलीनतंत्र वास्तव में डिजिटल व्यवधान और साइबर-पद्धति में दुनिया के नेताओं में से एक है, और कोई भी यथोचित रूप से यह अनुमान लगा सकता था कि संघर्ष शुरू होने से पहले ही, रूस ने डिजिटल हमलों के हिमस्खलन के साथ यूक्रेन को दलदल में डाल दिया होता। यूक्रेन के पास अपनी खुद की डिजिटल सेना है, जिसमें डिजिटल हथियारों का एक सैन्य निकाय भी शामिल है। युद्ध में कई हफ्तों के बावजूद, हालांकि, इस बात की बहुत कम स्पष्टता है कि दोनों पक्षों ने किसी हद तक साइबर हथियारों को तैनात किया है।

पहले के हमले

यूक्रेन के खिलाफ साइबर युद्ध छेड़ने वाले कथित रूसी सैन्यकर्ताओं के कई प्रचलित उदाहरण हैं। एक उदाहरण जिसने कुछ साल पहले जनता के दिमाग पर छाप छोड़ी थी, यूक्रेन के इलेक्ट्रिक ग्रिड पर रूस का साइबर हमला था, जिससे देश के कई हिस्सों को कई दिनों तक गंभीर सर्दियों के बीच, बिजली ना होने के संकट से गुज़रना पड़ा था। यूक्रेनी साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी दावा किया है कि उन्होंने कुछ साल पहले यूक्रेनी राष्ट्रपति चुनाव को पटरी से उतारने के लिए क्रेमलिन से जुड़े एक बड़े साइबर ऑपरेशन को रोका था। हालांकि, यूक्रेन की तुलना में, ये रूस की साइबर आक्रामक क्षमताओं के हिमशैल की केवल नोक बराबर था।

दोनों पक्ष के पास अब डेटा-वाइपर जैसे मैलवेयर हैं, जिसका उपयोग दोनों करते हैं और वह अत्यधिक प्रभावी साबित हुए हैं। जिस दिन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू हुआ, माना जाता है कि रूसी साइबर इकाइयों द्वारा कई यूक्रेनी सैन्य लक्ष्यों के खिलाफ विनाशकारी मैलवेयर को सफलतापूर्वक तैनात किया गया। उदाहरण के लिए, यूक्रेनी उपग्रह इंटरनेट प्रदाता, इस तरह के एक साइबर हमले का लक्ष्य था, जिससे व्यापक संचार आउटेज हो गया। यूक्रेनी बैंकिंग और रक्षा वेबसाइटों के खिलाफ वितरित इनकार-सेवा (डीडीओएस/DDoS) हमलों की एक श्रृंखला समकालिक हुई। इसके अलावा, वाइपर मैलवेयर को कई यूक्रेन सरकार के नेटवर्क में पेश किया गया था, जबकि यूक्रेनी रक्षा मंत्रालय और सैन्य लक्ष्यों की वेबसाइटों को डीडीओएस और फ़िशिंग हमलों की एक श्रृंखला का सामना करना पड़ा।

लेकिन कोई महायुद्ध नहीं 

हालांकि, इनमें से कोई भी बड़े पैमाने पर साइबर हमलों के रूप में वर्णित किए जाने के समान नहीं है। जहां तक युद्ध के संचालन का संबंध है, छोटे पैमाने पर साइबर हमलों की तार को, संघर्ष के आचरण या परिणाम पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला नहीं माना जा सकता है। इसलिए, प्रमुख प्रश्न उठता है, कि यूक्रेन ने स्वयं कि इतनी प्रभावी रक्षा कैसे करी – और कैसे काफी हद तक रूसी आक्रमण को रोक दिया – रूस ने बड़े पैमाने पर सर्वोत्मुख (all-out) साइबर-आक्रमण शुरू नहीं किया है।

यह बहुत संभावना है, और संभवतः एक तथ्य है, कि गतिज हमलों को एक छोटी समयरेखा में उच्च प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर साइबर हमलों की योजना बनाने और निष्पादित करने में बड़ी कठिनाइयां हैं। यदि ऐसा है, तो यह अटकलें कि, युद्ध की स्थिति में साइबर हमले एक अपराधी को एक और ‘पर्ल हार्बर’ को लागू करने की क्षमता प्रदान करते हैं, अत्यधिक अवास्तविक हैं। तथ्य यह है कि रूस और यूक्रेन दोनों, जिनके पास साइबर विशेषज्ञों की शक्तिशाली सेनाएं हैं, अर्थात हैकर्स (यूक्रेन ने महत्वपूर्ण रूसी प्रणालियों को लक्षित करने के लिए हैकर्स की एक अंतरराष्ट्रीय सेना बनाने की भी कोशिश की थी), साइबर महायुद्ध पैदा करने में विफल हुए हैं जो संभवतः एक राहत के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन संभवतः अन्य अंतर्निहित कारण हैं।

साइबर विशेषज्ञों के बीच हमेशा एक विचार रहा है कि ‘साइबर स्पेस कोई युद्ध क्षेत्र नहीं है’, बल्कि यह मूल रूप से एक नागरिक स्थान है – लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘मानव अनुभव, अन्वेषण और विकास में यह एक नया रोमांचक युग’ है। इस प्रकार, ऐसा लगता है कि पावर ग्रिड, अस्पतालों, बैंकों और उद्योगों जैसे नागरिक लक्ष्यों को बाधित करने की अपनी सभी क्षमताओं के लिए, साइबर-पावर को अभी तक युद्ध के मैदान की स्थितियों में निर्णायक प्रभावों के संदर्भ में अपनी तथाकथित खतरे की क्षमता प्राप्त करना बाकी है। अब तक, साइबर हमलों का प्रभाव उस दहलीज से भी काफी नीचे है, जो किसी परमाणु युद्ध से उत्पन्न किसी एक परमाणु विस्फोट से होता है।

पश्चिम की पद्दति

इस बीच, पश्चिम वर्तमान में गलत तर्क का उपयोग कर बहस करने में व्यस्त है, अर्थात्, मास्को संभवतः अगले दांव पर विचार कर रहा है क्योंकि यूक्रेन में उसकी आक्रामकता रुक गयी है। इस चेतावनी में निहित यह है कि मास्को परमाणु संघर्ष शुरू करने की योजना बना सकता है।

पश्चिम का मानना है कि रूस ऐसी स्थिति में, संभवतः यूक्रेनी रक्षकों को घर भगाने के लिए, रूस आक्रामक प्रतिरोध हेतु सामरिक / युद्धभूमिगत  परमाणु हथियारों को नियोजित कर सकता है। यह पहली बार नहीं है कि पश्चिम इस तरह के दृष्टिकोण को पेश कर रहा है, क्योंकि यह समय-समय पर देखा गया है कि रूस का, शासन-कला के एक उपकरण के रूप में, परमाणु हथियारों के मूल्य’ पर दृढ़ विश्वास है; और यह कि यूक्रेन में तसलीम (showdown), कम प्रभाव वाले परमाणु हथियारों को नियोजित करते हुए, न केवल यूक्रेन को बल्कि नाटो और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए भी, एक स्पष्ट संदेश भेजने में मदद करेगा, कि रूस का दृढ़ संकल्प है कि पूर्व दिशा में नाटो के किसी भी प्रकार के विस्तार की अनुमति नहीं दी जाएगी।

इस तर्क का समर्थन करने के लिए  सबूतों के अभाव में इस तरह के परिदृश्य को जोड़ना खतरनाक हो सकता है। यह काफी हद तक एक आत्म-पूर्ण भविष्यवाणी में बदल सकता है। बावजूद इसके, कि इस तरह की सभी अटकलों से जुड़े अंतर्निहित खतरे हैं।

Source: The Hindu (15-06-2022)

About Author: एम.के. नारायणन ,

खुफिया ब्यूरो के पूर्व निदेशक, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल, वर्तमान में CyQureX प्राइवेट लिमिटेड, यूके-यू.एस.ए. के कार्यकारी अध्यक्ष हैं, एक साइबर सुरक्षा संयुक्त उद्यम