Time to revamp employment policy, more jobs are needed

रोजगार नीति में सुधार करें ताकि अधिक नौकरियां पैदा हों

सरकार द्वारा 10 लाख नौकरियों के सृजन की योजना जमीनी वास्तविकताओं से दूर है

Economics Editorial

भारत सरकार ने हाल ही में अगले 18 महीनों में 10 लाख सरकारी नौकरियां पैदा करने की अपनी योजना की घोषणा की है। लगभग 40 लाख स्वीकृत पदों में से 22% पद अब भी खाली हैं और सरकार इन पदों को 18 महीनों में भर देगी। 

यद्यपि इस घोषणा को “युवाओं के हित में ऐतिहासिक कदम” कहा गया है और कुछ शीर्ष सरकारी नेताओं द्वारा “युवाओं के बीच एक नई आशा और विश्वास पैदा करने” के रूप में बताया है, लेकिन इस योजना में गंभीर समस्याएं हैं।

रिक्तियां बहुत अधिक हैं

पहला प्रश्न यह है कि अपेक्षित कर्मचारियों की संख्या के पांचवें से अधिक की अनुपस्थिति में अब सरकार किस प्रकार प्रबंधन कर रही है? केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 8.72 लाख पद खाली थे, जैसा कि कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 3 फरवरी, 2022 को राज्यसभा को बताया था।  यदि सरकारी बैंकों, रक्षा बलों और पुलिस, स्वास्थ्य क्षेत्र, केंद्रीय स्कूलों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों और न्यायपालिका में विभिन्न पदों को जोड़ा जाए, तो यह संख्या लगभग 30 लाख पदों को छूती है। इस संख्या में राज्य सरकार की नौकरियों में रिक्तियां शामिल नहीं हैं। जैसा कि स्वीकृत पदों से मोटे तौर पर सरकार चलाने के लिए आवश्यक पदों का संकेत मिलता है, ऐसा लगता है कि यह सरकार शायद कर्मचारियों की गंभीर कमी का सामना कर रही है, जो कार्य में लंबी देरी, भ्रष्टाचार और अन्य अक्षमताओं का कारण बन रही है।

तथापि, सरकार ने हाल के वर्षों में ऐसी कमियों के बारे में कोई शिकायत नहीं की है। फिर सरकार ने अचानक यह घोषणा क्यों की? क्या ऐसा इसलिए है कि सरकार युवाओं की बेरोजगारी के बारे में चिंतित है? या ऐसा इसलिए है कि सरकार आवश्यक पदों को भरना चाहता है? या, क्या ऐसा इसलिए है कि कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं?

‘गुणवत्ता’ का मुद्दा 

एक अन्य प्रमुख चिंता इस योजना के माध्यम से उत्पन्न होने वाले रोजगार की गुणवत्ता के बारे में है। कुल सरकारी रोजगार में ठेका श्रमिकों की हिस्सेदारी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ रही है – 2017 में 11.11 लाख से 2020 में 13.25 लाख और 2021 में 24.31 लाख तक। इसके अलावा, “मानद कार्यकर्ता” जैसे अंगनवाड़ी कार्यकर्ता, उनके सहायक, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) कार्यकर्ता आदि हैं। सरकार के ये कर्मचारी कम वेतन (समेकित मजदूरी) कमाते हैं, और सामाजिक सुरक्षा के न्यूनतम पैकेज सहित “सभ्य कार्य” शर्तों (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन/ILO की सिफारिशों) के हकदार नहीं हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी योजना के तहत सृजित रोजगार एक मानक गुणवत्ता का होगा। सरकार की ओर से इस पर अभी तक कोई आश्वासन नहीं दिया गया है।

अधिक नौकरियों की जरूरत है

देश में कुल श्रम बल 43.72 करोड़ (अप्रैल 2022 के आंकड़े) है। 42.13% की श्रम बल भागीदारी दर (Centre for Monitoring Indian Economy Pvt. Ltd.) पर वर्तमान में युवाओं की बेरोजगारी दर लगभग 20% है। लगभग 30 मिलियन बेरोजगार लोगों के बैकलॉग और हर साल 50 लाख-70 लाख श्रमिकों (विश्व बैंक) के वार्षिक परिवर्धन को देखते हुए, आज भारत की बेरोजगारी की समस्या के आयाम दुर्जेय हैं। अगले 18 महीनों में केवल 10 लाख नौकरियों का सृजन बहुत कम है। सरकार की इस योजना से देश के युवाओं को शायद ही कोई राहत मिलेगी; और वर्तमान बेरोजगारी की समस्या पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रोजगार के अवसर पैदा करने में निजी क्षेत्र (private sector) का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। वर्तमान में, जब अर्थव्यवस्था अभी भी नॉवल कोरोनावायरस महामारी के कारण होने वाले झटकों को दूर करने के लिए संघर्ष कर रही है, और जब निजी अंतिम उपभोग व्यय महामारी से पहले के स्तर को पार नहीं कर पाया है, वहीँ निजी फर्मों द्वारा लागत में कटौती करके (मजदूरी बिलों को तर्कसंगत बनाने के रूप में) अपने मुनाफे के अंतर (profit margin) का प्रबंधन करते हुए देखा जा रहा है। इस स्थिति में सरकार के लिए यह अधिक से अधिक महत्वपूर्ण है कि वह यथासंभव अधिक से अधिक नौकरियां सुनिश्चित करे।

मूल आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करें

जैसा कि दावा किया गया है, यदि सरकार, बेरोजगारों और युवाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए वास्तव में ‘मिशन मोड’ में है, तो उसे घोषणा की तुलना में और भी अधिक करना होगा। आरंभ में, सरकार को उसके भीतर ही अधिक रोजगार सृजित करना होगा। हाल ही में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों और रैंकिंग से पता चला है कि भारत स्वास्थ्य और पोषण के मामले में अधिकांश अन्य देशों से बहुत पीछे है, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों में शिक्षा, साक्षरता और कौशल में, प्रारंभिक बचपन व उसके बाद बच्चों की समग्र देखभाल के मामले में; पेयजल और स्वच्छता, और अन्य बुनियादी ढांचों में, आदि।

हमारा मानना है कि सरकार को निजीकरण पर निर्भर किए बिना, कम से कम 40% आबादी के लिए, इन बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी लेनी होगी। सरकार के लिए पहला कार्य बुनियादी कल्याण, मानव विकास और मानव संसाधन विकास और इन क्षेत्रों में निजीकरण के बिना नीचे की आबादी की बुनियादी अवसंरचना का बेहतर प्रत्यक्ष ध्यान रखना होगा।

एक अन्य प्रमुख कार्य, अर्थव्यवस्था के श्रम-गहन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए औद्योगीकरण नीति को फिर से तैयार करना और बेहतर प्रौद्योगिकी और उच्च उत्पादकता सुनिश्चित करके सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) और अनौपचारिक उत्पादन को बढ़ावा देना, वित्त प्रदान करना (कार्यशील पूंजी सहित) और उन सभी उद्योगों के लिए आगे क्लस्टर विकास को आगे बढ़ाना होगा जिनमें क्षमता है।

शहरी रोजगार

और, अंत में, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि शहरी अर्थव्यवस्था महामारी से बुरी तरह से आहत हुई है, शहरी युवाओं के लिए पर्याप्त शहरी रोजगार के अवसर बनाने के लिए एक सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम सबसे वांछनीय होगा। यह कार्यक्रम ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम से अलग होना चाहिए।

शहरी कार्यक्रम में शामिल होना चाहिए: बुनियादी शहरी सेवाएं, जहां युवाओं को विशेष प्रशिक्षण मिलेगा ताकि उन्हें मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में अवशोषित किया जा सके; बच्चों की देखभाल के लिए डे-केयर सेंटर स्थापित किए जायें ताकि महिलाओं को अपनी अवैतनिक सेवाओं को कम करने और बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण देखभाल सुनिश्चित करने में सक्षम बनाया जा सके; और गुणवत्तापूर्ण शहरी जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिए निर्माणाधीन कार्यों में अवसंरचनात्मक अंतरालों को भरा जाये।

यदि सरकार में रिक्त पदों को भरने का इशारा किसी मिशन रोजगार का हिस्सा है, तो इसके बाद सरकार की रोजगार नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने होंगे। हमें आशा है कि भारत के लोग इस संकेत के पीछे के उद्देश्यों को समझने में सक्षम होंगे, और तदनुसार सरकार के कार्य-निष्पादन का आकलन करेंगे।

Source: The Hindu (13-07-2022)

About Author: इंदिरा हिरवे,

सेंटर फॉर डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स, अहमदाबाद में निदेशक और प्रोफेसर हैं।

नेहा शाह,

एल.जे. विश्वविद्यालय, अहमदाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर हैं