नई रोशनी का स्रोत: वर्ष 2022 का चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार

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स्वंते पाबो को मिला नोबेल पुरस्कार जीवविज्ञानियों को अकादमिक जकड़न से बचने के लिए प्रेरित करेगा

इस वर्ष चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार स्वीडन के आनुवंशिकीविद् और जर्मनी के लीपजिग स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के निदेशक स्वंते पाबो को दिया जाएगा। विज्ञान के तेजी से एक सहयोगी और प्रतिस्पर्धी स्वरुप ग्रहण करते जाने की पृष्ठभूमि में, नोबेल पुरस्कारों के हाल के रुझानों से यह साफ है कि आमतौर पर विज्ञान से जुड़े हर पुरस्कार के कई विजेता होते हैं।

यह पुरस्कार पाबो के शोध की मौलिकता और उसके क्रांतिकारी निहितार्थों के प्रति इस मायने में एक सम्मान है कि जीव विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर होती प्रगति से बार-बार बदलते परिदृश्य में, उन्हें इस वर्ष मेडिसिन या फिजियोलॉजी पुरस्कार के एकमात्र विजेता के रूप में चुना गया है। यह एक ऐसा पहलू है, जो 2016 के बाद से अबतक नदारद रहा था।

स्वीडन के इस 67 वर्षीय वैज्ञानिक ने खामोशी से एक कोपर्निकस सरीखी क्रांति का आगाज किया। जिस तरह से कोपर्निकस ने सूर्य को केंद्र में रखा था और पृथ्वी का पद घटाकर उसे सूर्य के चारों ओर घूमने वाला एक अन्य ग्रह करार दिया था, वैसे ही पाबो ने मानव के क्रमिक विकास से जुड़े सवालों के केन्द्र में निएंडरथल को लाया। माना जाता है कि निएंडरथल कई मानव-जैसी प्रजातियों में से एक है और यह प्रजाति विकास की दौड़ में पिछड़ गया। पाबो के अनुसंधान की बदौलत अब हमें यह पता चला है कि यूरोपीय और एशियाई लोगों में निएंडरथल के डीएनए का एक फीसदी से लेकर चार फीसदी के बीच हिस्सा मौजूद है।

इस लिहाज से, बीमारी की प्रवृत्ति और 1,00,000 वर्ष पहले अफ्रीका में मनुष्यों की तरह विकसित हुई एक प्रजाति के परिस्थितियों के अनुकूल ढलने के संदर्भ में, मानवता का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होगा। पाबो ने जीवाश्म अवशेषों से डीएनए निकालने की तकनीकों को निपुणता के साथ संचालित करते हुए इस तथ्य को प्रदर्शित किया। जीवाश्म अवशेषों से डीएनए निकालना एक दुरूह कार्य है क्योंकि ऐसे अवशेषों में डीएनए बहुत कम बचे होते हैं और वे आसानी से दूषित हो जाते हैं।

इन विधियों के सहारे आगे बढ़ते हुए, पाबो और उनके सहयोगियों ने अंततः 2010 में पहली बार निएंडरथल के जीनोम का अनुक्रम (सीक्वेंस) प्रकाशित किया। इसे परिप्रेक्ष्य में रखें, तो मानव जीनोम का पहला पूर्ण अनुक्रम 2003 में ही पूरा हो पाया था। मानव जीनोम के साथ तुलनात्मक विश्लेषण से यह तथ्य सामने आया कि निएंडरथल और होमो सेपियन्स के सबसे हाल के साझा पूर्वज लगभग 8,00,000 साल पहले रहते थे। यह भी कि दोनों प्रजातियां अक्सर एक दूसरे के निकट रहती थीं, और इस हद तक परस्पर संकरित होती थी कि निएंडरथल की आनुवंशिक छाप आज भी जारी है।

वर्ष 2008 में, पाबो की प्रयोगशाला में, 40,000 साल पुरानी उंगली की हड्डी के एक टुकड़े से पता लगाए गए डीएनए से डेनिसोवा नाम की होमिनिन की एक बिल्कुल नई प्रजाति की जानकारी मिली। यह पहला मौका था जब डीएनए विश्लेषण के आधार पर एक नई प्रजाति की खोज की गई थी। इसके विस्तृत विश्लेषण से यह पता चला कि यह प्रजाति भी मनुष्यों के साथ संकरित हुई थी और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में छह फीसदी मानव जीनोम का संबंध डेनिसोवन वंश से है।

इस किस्म के खोज इस दार्शनिक प्रश्न को जन्म देते हैं कि एक ‘प्रजाति’ का होने के मायने क्या हैं। पाबो को मिला यह पुरस्कार निश्चित रूप से भारत के भावी जीवविज्ञानियों को खुद को एक अकादमिक जकड़न में कैद करने के बजाय गहरे सवालों के जवाब खोजने और विज्ञान का उपयोग नई रोशनी बिखेरने के लिए प्रेरित करेगा।

Source: The Hindu (06-10-2022)
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