अतीत और समय: भू-विरासत जगहें और भू-अवशेष विधेयक का मसौदा 

Fossil and time

जीएसआई को असीम शक्ति देने से जीवाश्म विज्ञान में स्वतंत्र शोध में रुकावट आएगी

छिटपुट ही सही, लेकिन ठोस तरीके से जीवाश्म वैज्ञानिकों ने भारत में दिलचस्प खोज की है। जनवरी में एक टीम ने टाइटनोसॉरस के जीवाश्म बन चुके 256 अंडों के साथ डायनासॉर के अंडे देने वाले 92 घोसलों की खोज की। यह अपने-आप में इस तरह की सबसे बड़ी खोज है। इन घोसलों की उम्र 10 से लेकर 6.6 करोड़ साल पुरानी बताई जा रही है। यह उस जमाने का है जब ‘भारत’ खुद में एक महाद्वीप हुआ करता था और उस समय तक यूरेशियन भूमि में इसका विलय नहीं हुआ था।

इसी तरह, गुजरात के कच्छ का रेगिस्तान और महाराष्ट्र का दक्कन उन ताकतों के गवाह रहे हैं जिन्होंने इतिहास को इस तरह मोड़ा कि सबसे अधिक आबादी वाले इस देश में तरह-तरह की भौगोलिक बनावटें सामने आईं। सांस्कृतिक इतिहास और पुरातत्व में हस्त निर्मित कलाकृतियों को संरक्षित रखने की ललक के विपरीत, पत्थरों की संरचना, तलछटों में मौजूद पदार्थ और जीवाश्व जैसे प्राकृतिक ‘भू-इतिहास’ को संरक्षित रखने और बड़े अवाम को इसके बारे में बताने की कोशिश बहुत कम दिखती है।

दशकों से शोधकर्ता यह चेतावनी देते आए हैं कि इस उपेक्षा की वजह से जन-जीवन के जेहन से इतिहास का यह खंड मिट जाएगा। साथ ही, ऐसी प्राकृतिक संपदाएं भी नष्ट हो जाएंगी। खान और खनन मंत्रालय द्वारा पेश किए गए भू-विरासत स्थल और भू-अवशेष (संरक्षण और रखरखाव) विधेयक, 2022 के मसौदे को इस संरक्षण की प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में एक ठोस कदम के रूप में देखा जा सकता है।

इस विधेयक में खनन मंत्रालय के निकाय, भारतीय भूविज्ञान सर्वेक्षण (जीएसआई) के महानिदेशक को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी साइट को ‘भू-विरासत‘ घोषित कर सकता है, निजी जमीन पर मौजूद जीवाश्मों या पत्थरों को अपने कब्जे में ले सकता है, ऐसी जगहों से 100 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के निर्माण कार्य को रोक सकता है, जीएसआई के महानिदेशक के निर्देशों का उल्लंघन करने, ऐसे स्थलों पर तोड़-फोड़ करने और संरचनाओं को विरूपित करने के लिए पांच लाख रुपए तक का जुर्माना या शायद कारावास की सजा दे सकता है।

जीएसआई के दायरे से बाहर, केंद्रीय और राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और निजी संस्थाओं में काम करने वाले विशेषक्षों ने जीएसआई को दी गई इन असीम शक्तियों पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि इससे जीवाश्वम विज्ञान के क्षेत्र में होने वाले शोधों पर असर पड़ेगा। उनकी मांग है कि राष्ट्रीय भू-विरासत प्राधिकरण की तर्ज पर ज्यादा समावेशी संस्थान बनें, ताकि किसी भी जगह को ‘भू-ऐतिहासिक’ महत्व का घोषित करने और कलाकृतियों और खोजों में निकली वस्तुओं को संरक्षित करने में लोकतांत्रिक रवैया अख्तियार किया जा सके।

ऐसा पता चला है कि सरकार अभी इस विधेयक को संसद में पेश करने से पहले कई पहलुओं पर विचार कर रही है। प्रावधानों में गुण-अवगुण हो सकते हैं, लेकिन इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कोई भी कानून ऐसा न बने जिससे स्वतंत्र जांच की संभावनाएं दब जाए। भारत में जमीन की अहमियत और आर्थिक जरूरतों को देखते हुए इस बात पर सवाल उठ सकते हैं कि संरक्षण और आजीविका के साधनों के बीच टकराव हो सकता है, लेकिन कानून लागू करने से पहले इन चीजों पर गौर करना होगा और आम सहमति बनाते हुए एक संतुलन स्थापित करना होगा।

Source: The Hindu (15-02-2023)