गेमिंग और सट्टेबाजीः केन्द्र द्वारा ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने का मामला

Gaming and gambling

आर्थिक अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और सामाजिक मजबूरियों के बीच संतुलन होना चाहिए

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दायित्व और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 के मसौदा संशोधन में ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के केंद्र सरकार के प्रस्तावित उपायों ने कई सवालों को अनुत्तरित ही छोड़ दिया है। स्व-नियामक निकाय की स्थापना, खिलाड़ियों से नो-योर-कस्टमर (केवाईसी) जानकारी का संग्रहण, और कंपनी के भीतर शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति जैसे कुछ प्रस्तावित उपाय पहले से ही लागू हैं। ये ऐसे कदम हैं जिन्हें इन कंपनियों का नुमाईंदगी करने वाले उद्योग निकायों ने खुद बढ़ावा दिया है।

केंद्र के प्रस्तावित मसौदे के मुकाबले तमिलनाडु जैसे राज्य और ज्यादा सख्त विनियमन चाहते हैं। खास तौर पर, असली पैसों की सट्टेबाजी के मामले में। केंद्र के मसौदे में यह साफ नहीं है कि राज्य अपनी तरफ से अतिरिक्त प्रतिबंध लगा सकते हैं या नहीं। अब तक गेमिंग उद्योग ने कानूनी तौर पर चुनौती देकर कई प्रतिबंधों को रोक दिया है। उद्योग का तर्क है कि यह खेल कौशल पर आधारित है, न कि तुक्केबाजी पर। इसलिए, असली सट्टेबाजी और इसमें मामूली अंतर है। जिन खेलों में दांव लगाने की जरूरत होती हैं उन्हें भौतिक तौर पर खेलना, या तो अंग्रेजों के जमाने से लागू सार्वजनिक सट्टेबाजी अधिनियम 1867 या फिर राज्यों के अपने सट्टेबाजी कानून के तहत, अब भी गैरकानूनी है।

केंद्र सरकार को इस पर स्पष्ट जवाब देना चाहिए कि जिस तरह इन खेलों को भौतिक तौर खेलने पर पाबंदी लगाने का अधिकार राज्यों को है, उसी तरह वे ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगा सकते हैं या नहीं। हालांकि गेमिंग उद्योग के भीतर भारत के आर्थिक विकास को बढ़ाने की काफी क्षमता है, लेकिन इसके मजबूत विनियमन की भी उतनी ही जरूरत है। बात चाहे कौशल की हो या फिर तुक्केबाजी की, हर तरह के ऑनलाइन गेम का असर व्यक्ति और समाज के ऊपर पड़ता है। कम और लंबी, दोनों अवधियों के लिए।

फिलहाल, इस मसौदा संशोधन में ऑनलाइन गेम, सिर्फ सट्टेबाजी वाले प्लैटफॉर्म तक ही सीमित है। हालांकि, सरकार ने इस बात का इशारा दिया है कि ‘ऑनलाइन गेम’ की परिभाषा को आने वाले दिनों में और व्यापक किया जा सकता है। दुनिया भर के समाज युवा खिलाड़ियों पर वीडियो गेम के असर से जूझ रहे हैं और कुछ गेमर भी इसकी लत की गिरफ्त में आ सकते हैं। उदाहरण के लिए, चीन ने युवा गेमर के लिए रोजाना खेल के घंटों को सीमित कर दिया है। समय सीमा पार करने के बाद कोई भी खिलाड़ी उस दिन और नहीं खेल सकता। भारत में भी इस तरह के कदमों पर विचार करते समय, सावधानी और संयम बरतना चाहिए। ऐसा न हो कि

सरकार देश के छोटे गेम डेवलपर और भारतीय दर्शकों वाले बड़े अंतरराष्ट्रीय स्टूडियो, दोनों के लिए अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दे। सरकार का कहना है कि उसका लक्ष्य इस उद्योग को सुविधा देना है, न कि उसके विकास में अड़ंगा डालना। सरकार ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि भविष्य में वह “हिंसक, लत वाले या यौन सामग्री” वाले वीडियो गेम को रोकने की कोशिश करेगी। आर्थिक अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और सामाजिक मजबूरियों के बीच संतुलन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक स्तर पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए।

Source: The Hindu (05-01-2023)