यह तटस्थता नहीं हैः यूएन में यूक्रेन मसले पर भारत की सोच

Not Neutral

भारत किसी देश की संप्रभुता के मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपनाते हुए नहीं दिख सकता

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर हमले शुरू करने की तारीख (24 फरवरी, 2022) के लगभग एक साल बाद रूस की आलोचना करने वाले ताजा प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुए मतदान में 141 वोट पक्ष में पड़े, सात विरोध में (इसमें रूस भी शामिल है) और 32 देशों ने मतदान ही नहीं किया (इसमें भारत और चीन शामिल हैं)।

कुल 70 से अधिक देशों द्वारा प्रायोजित इस प्रस्ताव या कथित रूप से “न्यायपूर्ण और स्थायी शांति” के आह्वान में शत्रुता को तत्काल समाप्त करने की मांग की गई थी और अधिकारों के उल्लंघन व युद्ध अपराधों के लिए अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में जवाबदेही की अपील की गई थी। ध्‍यान देने वाली बात यह है कि अमेरिका, उसके सहयोगियों और यूरोपीय संघ के देशों के नेतृत्व में इस प्रस्‍ताव के प्रायोजकों ने किसी किस्‍म की शांति वार्ता का आह्वान नहीं किया था – खुद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की भी ऐसा नहीं चाहते चूंकि यथास्थिति का लाभ रूसी सेना को ही मिलेगा, जो अब तक यूक्रेन के लगभग पांचवें हिस्से पर कब्‍जे का दावा कर चुकी है।

अपने संशोधन में तत्‍काल संवाद शुरू करने की मांग रूस के सहयोगी बेलारूस ने भी की थी। लेकिन इस संशोधन सहित बेलारूस के एक और संशोधन को खारिज कर दिया गया कि “आक्रमण“ शब्द को रूस द्वारा कथित “विशेष सैन्य अभियान“ से बदला जाय। नतीजतन, यूक्रेन में सैन्य गतिरोध की स्थिति कायम तो है, लेकिन हताहतों की संख्या में वृद्धि जारी है और पश्चिमी प्रतिबंधों को दुनिया के अधिकांश हिस्सों का समर्थन नहीं मिल सका है। इसके बावजूद यूक्रेन और नाटो देशों ने इस मतदान को अपनी बड़ी जीत करार दिया है- जैसा कि उन्होंने 2 मार्च, 2022 को इसी तरह के मतदान में किया था।

अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा कई प्रयासों के बावजूद भारत ने मतदान से परहेज किया। पिछले साल से अब तक प्रमुख संयुक्त राष्ट्र निकायों में रूस की आलोचना संबंधी लाए गए किसी भी प्रस्ताव पर भारत ने लगातार यही रुख बरता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिए गए स्पष्टीकरण में मोदी सरकार ने मॉस्को के साथ अपने पारंपरिक संबंधों और भारतीय छात्रों के फंसे होने के बीच संघर्ष में एक पक्ष बनने संबंधी अपनी शुरुआती चिंताओं का हवाला देते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर दिया है।

भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि “कूटनीति और बातचीत“ ही आगे बढ़ने का एकमात्र जरिया है। उसने दावा किया है कि मध्यस्थता के लिए जगह छोड़ने के लिए एक किस्म की “तटस्थता“ बनाए रखना जरूरी है। रूस पर एकतरफा पश्चिमी प्रतिबंधों को खारिज करने और मास्को के साथ ईंधन एवं उर्वरकों का व्यापार बढ़ाने के उसके फैसले को स्वतंत्र निर्णय लेने की चाह के आलोक में समझा जा सकता है, लेकिन भारत के लिए यह कहना अब मुश्किल होता जा रहा है कि बहुपक्षीय चरण में मतदान से दूर रहने का उसका फैसला सैद्धांतिक है।

यह बिल्कुल साफ हो चुका है कि वास्तव में रूस ने अपने छोटे और संप्रभु पड़ोसी पर आक्रमण ही किया है और रूस द्वारा शुरू में घोषित अपने रणनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के बावजूद आक्रमण थमा नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के प्रसिद्ध बयान को राष्ट्रपति पुतिन ने अनसुना कर दिया है कि “यह युद्ध का युग नहीं है“। यह भी अस्‍पष्‍ट है कि यूक्रेन भारत को एक निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में देख रहा है या नहीं। भारत ने बीते दशकों में इस बात को साबित किया है कि वह दबाव में मतदान नहीं करेगा।

फिर भी नई दिल्ली जिस वैश्विक और क्षेत्रीय नेतृत्व का दावा करती है, वह संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के बुनियादी सिद्धांतों पर अलग-थलग दिखाई देने से साकार नहीं हो सकता।

Source: The Hindu (25-02-2023)