POSHAN Abhiyaan: the country needs to increase direct nutrition interventions

भारत को प्रत्यक्ष पोषण हस्तक्षेप बढ़ाने की जरूरत है

जीवन के पहले 1,000 दिनों में गर्भाधान पूर्व पोषण, मातृ पोषण और बच्चे को खिलाने की प्रथाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है

Social Rights

जैसा कि भारत स्वतंत्रता की अपनी 75 वीं वर्षगांठ के समारोहों की शुरुआत कर रहा है, इस पर गर्व करने के लिए बहुत कुछ है; विज्ञान, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिसने देश के प्राचीन, पारंपरिक और सभ्यतागत ज्ञान आधार, ज्ञान और धन को बढ़ाया है। फिर भी, यह निराशाजनक है कि स्वतंत्रता के सात दशकों के बाद भी, भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों जैसे कि बाल कुपोषण (35.5% अविकसित, 67.1% एनीमिक) से पीड़ित है, जो पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के 68.2% के लिए जिम्मेदार है। खराब पोषण न केवल स्वास्थ्य और अस्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि सीखने की क्षमता को कम करने और स्कूल में खराब प्रदर्शन की वजह बन गया है। और वयस्कता में, इसका मतलब है कि कम कमाई और मधुमेह, उच्च रक्तचाप और मोटापे जैसी पुरानी बीमारियों के बढ़ते जोखिम। अच्छी खबर यह है कि सरकार इसे ठीक करने के लिए दृढ़ संकल्पित प्रतीत होती है – राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) के लिए एक ज़ोर के धक्का के साथ, इसे प्रधान मंत्री व्यापक समग्र पोषण योजना, या पोषण अभियान (POSHAN/Prime Minister’s Overarching Scheme for Holistic Nutrition) के नाम से पुनः ब्रांडिंग किया है। इसका उद्देश्य महिलाओं, बच्चों और किशोरियों में कुपोषण को कम करना है।

महिला और बाल विकास मंत्रालय (MWCD), NNM को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय, इस दृष्टिकोण के साथ अभी भी बना हुआ है, ताकि जीवन के पहले 1,000 दिनों (गर्भावस्था के 270 दिन और 730 दिन; 0-24 महीने) के “अवसर की खिड़की” पर काम करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों को संरेखित किया जा सके। वैश्विक और भारतीय साक्ष्य पूरी तरह से इस रणनीति का समर्थन करते हैं, जो दो साल की उम्र तक होने वाली बड़े पैमाने पर अपरिवर्तनीय अवमंदन (stunting/बौनेपन) को रोकता है। 

पोषण अभियान, (जिसे अब पोषण 2.0 के रूप में जाना जाता है) सही ढंग और संयुक्त रूप से, चुनिंदा उच्च प्रभाव वाले आवश्यक पोषण हस्तक्षेपों व पोषण-संवेदनशील हस्तक्षेपों पर विशेष जोर देता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से मां, शिशु और छोटे बच्चे के पोषण को प्रभावित करता है, जैसे कि मातृ-बाल स्वास्थ्य सेवाओं की व्याप्ति में सुधार, महिला सशक्तिकरण, बेहतर पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य-रक्षा की उपलब्धता तक पहुंच बढ़ाना और विविध आहार के लिए घरेलू खाद्य उत्पादन को बढ़ाना।

NHFS डेटा एक सूचक है

NHFS-4 2015-16 की तुलना में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS)-5 2019-21 के आंकड़ों से पता चलता है कि महिला सशक्तिकरण के कई छद्म संकेतकों में चार से पांच साल की अवधि में पर्याप्त सुधार हुआ है, जिसके लिए सरकार तारीफ की हकदार है। प्रसवपूर्व सेवा उपस्थिति (58.6 से 70.0%) में पर्याप्त वृद्धि हुई है; महिलाओं के पास अपने स्वयं के बचत बैंक खाते (63.0 से 78.6%) हैं; महिलाएं के पास स्वयं का मोबाइल फ़ोन है (45.9% से 54.0%); 18 वर्ष की आयु से पहले विवाहित महिलाएं (26.8% से 23.3%)हैं; स्कूली शिक्षा के 10 या अधिक वर्षों को प्राप्त करने वाली महिलाएं (35.7% से 41.0%) और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन तक महिलाओं की पहुंच (43.8% से 68.6%) है। लेकिन, चिंताजनक रूप से, इस अवधि के दौरान, देश ने प्रत्यक्ष पोषण हस्तक्षेपों के मामले में अच्छी प्रगति नहीं की है। गर्भाधानपूर्व पोषण, मातृ पोषण, शिशु और बच्चे के पोषण को लेकर उचित प्रभावी ढंग से कार्रवाई किया जाना बाकी है। जबकि जीवन के पहले छह महीनों में पोषण हेतु केवल अनन्य स्तनपान की ही आवश्यकता होती है, भारत में जीवन के पहले छह महीनों में भी 20% से 30% कुपोषण है। न तो मातृ पोषण देखभाल हस्तक्षेप में और न ही शिशु और छोटे बच्चे को आहार प्रदान कराने की प्रथाओं में वांछित सुधार दिखा है। मातृपोषण नीति का अभी भी इंतजार किया जा रहा है।

शिशु और छोटे बच्चों के आहार पर एक नीति के बावजूद, और शिशु आहार के लिए वाणिज्यिक दूध की बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद, अनन्य स्तनपान (EBF/Exclusive Breastfeeding) के अभ्यास में केवल मामूली सुधार हुआ है। पहले तीन महीनों में बच्चों में कुपोषणता अधिक रहती है। अनन्य स्तनपान पर जागरूकता पैदा करना, उचित संग्रहण, बंद करके रखने, और स्वयं से स्तन को खाली करने की तकनीक को बढ़ावा देना, एक बच्चे को स्तन के दूध के इष्टतम हस्तांतरण के लिए महत्वपूर्ण है। सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी अल्टरनेटिव्स फॉर रूरल एरियाज (CTARA), आईआईटी मुंबई की टीम के हालिया सबूतों से संकेत मिलता है कि प्रसव से पहले प्रसवपूर्व जांच के दौरान गर्भवती महिलाओं को दिए जाने वाले सुनियोजित स्तनपान परामर्श और बार-बार घर के दौरे से एक महत्वपूर्ण अंतर पड़ता है। एक बच्चे के दैनिक वजन में वृद्धि प्रति दिन औसतन 30 से 35 ग्राम और कम वजन की व्यापकता दर लगभग दो तिहाई तक कम हो गई थी।

एक और महत्वपूर्ण हस्तक्षेप

NFHS-5 एक अन्य पोषण हस्तक्षेप में भी एक अंतर की पुष्टि करता है – पूरक आहार प्रथाओं (complementary feeding practices), यानी, छह महीने के बाद से स्तन के दूध की निरंतरता के साथ अर्ध-ठोस आहार पूरक देना। छह से आठ महीनों के बीच शुरू करने वाले पूरक आहार देने में कमी (Poor complementary feeding) अक्सर, जागरूकता की कमी के कारण होता है, कि क्या, कैसे, कितनी बार, और कितनी मात्रा में उचित रूप से पारिवारिक खाद्य पदार्थों को खिलाना है। तथ्य यह है कि उच्च सामाजिक- आर्थिक समूहों में भी 20% बच्चे नाटे (लम्बाई में कम) हैं, भोजन के चयन और खिलाने की प्रथाओं में खराब ज्ञान और कुचले हुए आहार को निगलने की बच्चे की क्षमता को इंगित करता है। हम कहां गलत हो रहे हैं?

इसलिए, पहले 1,000 दिनों में विशेष देखभाल के बारे में सही उपकरणों और तकनीकों के साथ सही समय पर जागरूकता पैदा करना प्राथमिकता है। हमें अब कार्य करना चाहिए, और एक मिशन मोड में वित्त और ऊर्जा का निवेश करना चाहिए। प्रधानमंत्री, पोषण 2.0 को एक बड़ा बढ़ावा दे सकते हैं, जैसा कि उन्होंने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम का उपयोग करके स्वच्छ भारत अभियान के लिए किया था। पोषण 2.0 का नेतृत्व करने वाली प्रणाली को फिर से देखने और इसके कार्यान्वयन में किसी भी दोष को दूर करने के लिए इसे कायापलट की आवश्यकता है। हमें यह देखने की जरूरत है कि क्या हम पहले 1,000 दिनों में मां-बच्चे के साथ सेवा वितरण संपर्कों के अवसर का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं, 1975 से मौजूद पोषण कार्यक्रम के लिए नोडल प्रणाली, महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) पर फिर से विचार करने और यह जांचने की आवश्यकता है कि क्या यह जीवन के पहले 1000 दिनों में मां-बच्चे तक पहुंचने के लिए सही प्रणाली है।

ICDS पर निर्भर रहने से हम वास्तव में, गर्भवती माताओं और बच्चों के साथ लगातार संपर्कों को खो रहे हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र प्रसवपूर्व देखभाल सेवाओं और बाल टीकाकरण सेवाओं के दौरान प्रदान करता है। यह भी पता लगाने की आवश्यकता है कि क्या सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से टेक-होम राशन पैकेटों के रूप में आईसीडीएस द्वारा आपूत किए गए पूरक पोषाहार को वितरित करने का कोई वैकल्पिक तरीका है और ICDS की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को उचित मातृ एवं शिशु आहार पद्धतियों के संबंध में समय पर परामर्श करने के लिए स्वतंत्र करने की ज़रूरत है।

हमें स्थिति की व्यवस्थित रूप से समीक्षा करने और एक नई प्रणाली विकसित करने और परीक्षण करने की आवश्यकता है जो गांव से जिला और राज्य स्तरों तक ICDS के मानव संसाधन और स्वास्थ्य को संयोजित करेगी। यह उस बेमेल को ठीक करेगा जो एक प्रभावी जवाबदेह प्रणाली होने से बच्चे के कुपोषण को रोकने के लिए जीवन के पहले 1000 दिनों में सेवाओं के वितरण पर ध्यान केंद्रित करने पर मौजूद है। यह दिमाग खोलकर सोचने का समय है, और प्रणालीगत खामियों और 1970 के दशक की प्राचीन प्रणाली पर हमारी निर्भरता को दूर करने का समय है, जो प्रक्रियाओं को धीमा कर रहा है। इसके अलावा, उन माताओं तक पहुंचने के लिए, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बाहर हैं, मास मीडिया या टीवी शो, पहले 1,000 दिनों में देखभाल पर प्रवचन आयोजित कर सकते हैं।

Source: The Hindu (05-07-2022)

About Author: डॉ. शीला सी. वीर,

एक सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण विशेषज्ञ और ‘विकासशील देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण’ पुस्तक के संपादक हैं