हर बूंद मायने रखती है: जल जीवन मिशन का संदर्भ

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Every drop counts

जल जीवन मिशन के तहत बनाया गया बुनियादी ढांचा टिकाऊ होना चाहिए

वर्ष 2024 तक हर ग्रामीण घर में पाइप के जरिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना नरेन्द्र  मोदी सरकार के सबसे महत्वपूर्ण वादों में से एक है। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की अगुवाई में जल जीवन मिशन के तहत अब 10.2 करोड़ ग्रामीण परिवार या लगभग 53 प्रतिशत पात्र आबादी के पास नल के पानी की सुविधा उपलब्ध है। सरकार का दावा है कि यह 2019 में इस योजना की शुरुआत के समय से 37 फीसदी – बिंदु की बढ़ोतरी है। इस योजना का घोषित मकसद प्रत्येक ग्रामीण घर में प्रति व्यक्ति प्रति दिन कम से कम 55 लीटर पीने योग्य पानी सुनिश्चित करना है। मतलब साफ है कि खालिस एक कनेक्शन मुहैया कराना काफी नहीं है। सरकार इस योजना की सफलता का मूल्यांकन करने के लिए वार्षिक सर्वेक्षण कराती है। एक निजी एजेंसी द्वारा हाल ही में किए गए एक आकलन में यह पाया गया कि भारत में लगभग 62 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास अपने परिसर में पूरी तरह से काम कर रहे नल के पानी के कनेक्शन मौजूद हैं। नोडल जल शक्ति मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर मार्च में जल संसाधन से संबंधित संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 46 फीसदी घरों में ऐसे पूरी तरह से काम कर रहे नल के पानी के कनेक्शन उपलब्ध हैं। यहां यह गौर करना मुनासिब होगा कि इस सर्वेक्षण के मकसदों के लिहाज से, कनेक्शन की अद्यतन संख्या की जानकारी हासिल करने के लिए एजेंसी द्वारा सिर्फ तीन फीसदी ग्रामीण परिवारों का ही सर्वेक्षण किया गया था। लिहाजा गलती की गुंजाइश काफी हो सकती है और यह काफी कुछ सर्वेक्षण के तरीके पर निर्भर करता है। अगर ये आंकड़े सटीक हैं, तो ये पीने योग्य  नल के पानी की पहुंच में प्रभावशाली वृद्धि को इंगित करते हैं और यह बताते हैं कि यह मिशन अपने 2024 के लक्ष्य को पूरा करने की ओर अग्रसर है।

हालांकि,  इस सर्वेक्षण ने इस उपलब्धि में व्यापक गैरबराबरी का खुलासा किया है। तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, गोवा और पुडुचेरी में जहां 80 फीसदी से अधिक घरों में पूरी तरह से काम कर रहे कनेक्शन मौजूद हैं, वहीं राजस्थान, केरल, मणिपुर, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मिजोरम और सिक्किम में आधे से भी कम घरों में ऐसे कनेक्शन हैं। लगभग 75 फीसदी घरों में सप्ताह के सभी दिन पानी मिलता है  और सिर्फ आठ फीसदी घरों को सप्ताह में केवल एक बार पानी मिलता है। औसतन घरों में प्रतिदिन तीन घंटे पानी मिलता है। इसके अलावा, इस रिपोर्ट में क्लोरीन संदूषण की समस्या का जिक्र है। भले ही पानी के 93 प्रतिशत नमूने कथित तौर पर जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के संदूषण से मुक्त पाए गए हों, लेकिन अधिकांश आंगनवाड़ी केंद्रों और स्कूलों में पानी में अवशिष्ट क्लोरीन मान्य सीमा से अधिक था। कोविड-19 महामारी ने इस योजना की प्रगति को बाधित कर दिया था। लेकिन अब जबकि अर्थव्यवस्था महामारी से पहले के स्तर के करीब है,  इस योजना की प्रगति में मदद के लिए श्रम और सामग्री संबंधी चुनौतियां कुछ हद तक नरम हुई हैं। केंद्र को उन राज्यों के साथ संपर्क बेहतर करना चाहिए जो इस लक्ष्य में पिछड़ रहे हैं और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस योजना के तहत बनाया गया बुनियादी ढांचा टिकाऊ हो, न कि वह सिर्फ चुनावी मकसदों को साधने का एक औजार साबित हो।

Source: The Hindu (04-10-2022)
'Medhavi' UPSC-CSE Prelims